________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ** 324 व्यंजनस्यावग्रहः॥ 18 // नारब्धव्यमिदं पूर्वसूत्रेणैव सिद्धत्वात् इत्यारेकायामाह;नियमार्थमिदं सूत्रं व्यंजनेत्यादि दर्शितम्। सिद्धे हि विधिरारभ्यो नियमाय मनीषिभिः॥१॥ किं पुनयंजनमित्याह;अव्यक्तमत्र शब्दादिजातं व्यंजनमिष्यते। तस्यावग्रह एवेति नियमोब्भक्षवद्गतः // 2 // ईहादयः पुनस्तस्य न स्युः स्पष्टार्थगोचराः। नियमेनेति सामर्थ्यादुक्तमत्र प्रतीयते // 3 // अव्यक्त पदार्थ का अवग्रह ही होता है। ईहा, अवाय, धारणा, स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान नाम के मतिज्ञान ये अव्यक्त अर्थ में प्रवृत्ति नहीं करते हैं॥१८॥ - पहले के “अर्थस्य” सूत्र करके ही इस “व्यंजनस्यावग्रह:" सूत्र का प्रमेय सिद्ध हो जाने से इस सूत्र का आरब्ध नहीं करना चाहिए। इस प्रकार की शिष्य की शंका का समाधान श्री विद्यानन्द आचार्य वार्त्तिक द्वारा करते हैं - यह “व्यंजनस्यावग्रहः" सूत्र नियम करने के लिए दिखलाया गया है क्योंकि कार्य सिद्ध हो जाने पर पुनः आरम्भ की गई विधि विचारशाली विद्वानों ने नियम करने के लिए मानी है। अर्थात् - व्यंजन अर्थ का अवग्रह हो जाना यद्यपि पूर्वसूत्र से ही सिद्ध था, किन्तु यहाँ यह दिखलाना है कि अव्यक्त वस्तु का अवग्रह ही होता है, ईहा, आदि नहीं // 1 // व्यंजन का क्या अर्थ है? इस प्रकार की जिज्ञासा का उत्तर है - यहाँ अव्यक्त शब्द, स्पर्श, रस, गंध का अथवा स्पर्शवान पुद्गल, रसवान पुद्गल आदि का समुदाय ही व्यंजन इष्ट किया गया है। उस व्यंजन का अवग्रह ही होता है। इस प्रकार का नियम जलभक्षण के समान जान लेना चाहिए। अर्थात् - जैसे कोई अनुपवास करने वाला जल पीता है। इसका अभिप्राय यह है कि वह अन्न, दूध, मिष्टान्न नहीं खाकर उस दिन केवल जल ही पीता है। इस प्रकार अवधारणात्मक ज्ञान हो जाता है॥२॥ उस अव्यक्त पदार्थ के फिर ईहा आदि मतिज्ञान नहीं होते हैं- क्योंकि वे ईहा आदि ज्ञान व्यक्तरूप से स्पष्ट अर्थ को विषय करने वाले हैं। इस प्रकार नियम करके सूत्र की सामर्थ्य से कह दिया गया अर्थ यहाँ प्रतीत हो जाता है। अर्थात्-अव्यक्त के ईहा आदि ज्ञान नहीं होते हैं। यह सूत्र में कण्ठोक्त नहीं कहा गया है। फिर भी नियम करने की सामर्थ्य से अर्थापत्ति से लब्ध हो जाता है॥३॥ शंका : जिस प्रकार इन्द्रियों से स्पष्ट अर्थ को विषय करने वाला अर्थावग्रह होता है, उसके समान वह व्यंजनावग्रह भी स्पष्ट विषय करने वाला क्यों नहीं माना जाता है? इन्द्रियजन्य तो यह भी है।