________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 380 अग्निरित्यग्निरित्यादेर्वक्ता कर्ता तु तादृशः। पराभ्युपगमात्कर्ता स चेद्वेदे पितामहः॥४६॥ तत एव न धातास्तु न वा कश्चित्समत्वतः। नानधीतस्य वेदस्याध्येतास्त्यध्यापकाद्विना // 47 // न सोस्ति ब्राह्मणोत्रादाविति नाध्येतृतागतिः। स्वर्गेधीतान् स्वयं वेदाननुस्मृत्येह संभवी // 4 // ब्रह्माध्येता परेषां वाध्यापकश्चेद्यथायथं / सर्वेपि कवयः संतु तथाध्येतार एव च // 49 // इत्यकृत्रिमता सर्वशास्राणां समुपागता। स्वयं जन्मांतराधीतमधीयामहि संप्रति // 50 // अनुवादक ही समझे जाते हैं कर्ता नहीं। इसके प्रत्युत्तर में जैनाचार्य कहते हैं कि वैदिक अग्नि शब्द और लौकिक अग्नि इत्यादिक शब्दों का जो कोई वक्ता है, वही वक्ता अग्नि इस शब्द का कर्ता है और वैसा ही अग्नि शब्द वेद में सुना जा रहा है अत: वहाँ भी तो वक्ता ही कर्ता समझा जाएगा। सहस्र शाखा वाला वेद स्वर्ग में पहिले ब्रह्मा के द्वारा बहुत दिन तक पढ़ा जाता है। फिर वहाँ से. उतर कर मनुष्यलोक में मनु आदि ऋषियों के लिए प्रकाश दिया जाता है। और फिर स्वर्ग में जाकर चिरकाल पढ़ा जाता है। यह ब्रह्मा, मनु आदि की संतान अनादि से चली आ रही है, ऐसा मानना व्यर्थ है।४५-४६॥ यदि मीमांसक कहें कि बुद्ध, नैयायिक आदि दूसरे विद्वानों ने तो अपने-अपने आगम के कर्ता स्वयं बुद्ध आदि स्वीकार किए हैं अत: दूसरों के कहने से ही उन आगमों का वह कर्ता माना जा चुका है तो वेद में भी वैशेषिक विद्वान् ब्रह्मा को कर्त्ता मानते हैं इस अंश में उनका स्वीकार करना क्यों नहीं मान लिया जाता है? यदि मीमांसक कहें कि इसलिए विधाता भी कर्ता नहीं है। तथा, और भी कोई वेद का कर्ता नहीं है, क्योंकि सभी अतीन्द्रिय ज्ञान रहित होने से समान ही हैं। तथा पूर्व में वेद का अध्ययन नहीं करने वाला कोई भी छात्र पढ़ाने वाले अध्यापक के बिना वेद का अध्ययन नहीं कर सकता है। इस प्रकार कहना भी उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इस युग की आदि में कोई ऐसा ब्राह्मण, या ब्रह्मा सिद्ध नहीं है जिसका कि पढ़ने वालापन जान लिया जाय अतः वेद के अध्येतापन का ज्ञान नहीं हो सकता है।४६-४७॥ मीमांसक कहते हैं कि स्वर्ग में जाकर स्वयं अध्ययन किये हुए वेदों को पीछे-पीछे स्मरण कर यहाँ मर्त्यलोक में ब्रह्मा वेदों का अध्ययन करने वाला है और दूसरे मनु, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों का यथायोग्य अध्यापन कराने वाला संभव है। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार कहने पर तो सम्पूर्ण कविजन भी स्वकृत काव्यों के पढ़ने वाले ही हो जायेंगे। अर्थात् छोटे-छोटे पुस्तक या श्लोकों अथवा पद्यों को बनाने वाले कवि लोगों का भी ब्रह्मा द्वारा अदृश्यरूप से अध्यापन करना सिद्ध हो जाता है। इस प्रकार सम्पूर्ण छोटे बड़े शास्त्रों को अकृत्रिमपना प्राप्त हो जाता है।४८-४९ / / वेद को बनाने वाले विद्वानों को तो इस प्रकार सम्वेदन नहीं होता है कि स्वयं अन्य पूर्व जन्म में पढ़े जा चुके गीत आदि को हम इस वर्तमान जन्म में पढ़ रहे हैं अत: उन कवियों या शास्त्ररचयिताओं को अध्येतापन नहीं है। इस प्रकार मीमांसकों के कहने पर तो संवेदन के बिना उसी दिन के उत्पन्न हुए बच्चे