Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 03
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 391
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 386 न च हेतुरसिद्धोयमव्यक्तार्थवचोविदः। प्रत्यक्षबाधनाभावादनेकांते कदाचन // 79 // अनुमेयेऽनुमानेन बाधवैधुर्यनिर्णयात्। तृतीयस्थानसंक्रांते त्वागमावयवेन च // 8 // परागमे प्रमाणत्वं नैवं संभाव्यते सदा। दृष्टेष्टबाधनात्सर्वशून्यत्वागमबोधवत् // 8 // भावाद्येकांतवाचानां स्थितं दृष्टेष्टबाधनं / सामंतभद्रतो न्यायादिति नात्र प्रपंचितम् // 8 // करिष्यते च तद्वत्स यथावसरमग्रतः / युक्त्या सर्वत्र तत्त्वार्थे परमागमगोचरम् // 83 // प्रमाण से जानने योग्य अनेकान्त में अनुमान के द्वारा बाधा नहीं आने का निर्णय हो जाने से और प्रत्यक्ष, अनुमान इन दो प्रमाणों से पृथक् तीसरे आगमगम्य स्थान में संक्रान्त प्रमेय में आगम प्रमाणों के अवयवों के द्वारा बाधा रहितपने का निर्णय हो रहा है। प्रत्यक्ष योग्य, अनुमान गोचर और आगम विषय पदार्थों में प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, प्रमाण तो प्रत्युत श्रुत के साधक हो रहे हैं। वे समीचीन श्रुत के कभी बाधक नहीं हैं। स्याद्वादियों के श्रुत या श्रुतज्ञान - का कोई भी बाधक नहीं है, अतः बाधा रहितपना ही श्रुत की सत्यता का ज्ञापक हेतु है॥७९-८०॥ दूसरे नैयायिक, मीमांसक आदि के द्वारा स्वीकृत आगम में प्रमाणपना सर्वदा संभव नहीं है, क्योंकि उन दूसरों के आगमोक्त तत्त्वों में प्रत्यक्ष अनुमान आदि प्रमाणों के द्वारा बाधा आती है, जैसे कि सभी पदार्थों के शून्यपने या उपप्लुतपने को पुष्ट करने वाले आगम ज्ञानों की प्रमाणता इन प्रत्यक्ष और अनुमानों से बाधित युक्ति, शास्त्र, अनुभवों से विरोध रहित वचनों को कहने वाले अहँत देव ही निर्दोष सर्वज्ञ हैं। अर्हत देव का प्रतिपादित किया गया आगम ही प्रमाण है। श्री जिनेन्द्रदेव के मतरूपी अमृत से जो प्राणी बाह्य है, या अपने आप्त के अभिमान में दग्ध है, उनका अभीष्ट प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित है।८१॥ कपिल, शून्यवादी, नैयायिक, अद्वैतवादी, बौद्ध, मीमांसक, वैशेषिक आदि एकान्तवादियों द्वारा माने गये भाव एकान्त, अभावएकान्त, भेदएकान्त, अभेदएकान्त, क्षणिकएकान्त, नित्यएकान्त आदि एकान्त वचनों के प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों से बाधा आती है। सम्पूर्ण जीवों के चारों ओर से कल्याण करने वाले श्री समन्तभद्राचार्य के देवागम स्तोत्र में कही गयी नीति से एकान्त वचनों का प्रमाणों से बाधित हो जाना प्रसिद्ध है अत: इस प्रकरण में हमने अधिक विस्तारपूर्वक विचार नहीं किया है। भगवान समन्तभद्राचार्य ने “भावैकान्ते पदार्थानां" - यहाँ से प्रारम्भ कर “इति स्याद्वादसंस्थिति:" पर्यन्त आप्तमीमांसा में सदेकान्त, एकत्वैकान्त, पृथक्त्वैकान्त, अवाच्यैकान्त, नित्यैकान्त, हेतुवाद, आगमवाद, पुरुषार्थवाद, ज्ञानस्तोकवाद आदि एकान्त वचनों में अनेक बाधायें सिद्ध कर दी हैं। (जिन्हें) वहाँ देखना चाहिए। तथा उसी के समान और भी यथायोग्य अवसर पर आगे इस ग्रन्थ में भी श्री गुरुवर्य समन्तभद्रस्वामी की शिक्षा के अनुसार इस तत्त्वार्थ-मोक्षशास्त्र में परमागम के विषयभूत सूक्ष्मतत्त्वों को सब स्थलों पर युक्ति के द्वारा सिद्ध कर दिया जाएगा // 83 //

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