________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 96 सामान्यविशेषविषयमनुमानमुपगंतव्यं ततः प्रवृत्तौ तस्य प्राप्तिप्रसिद्धः। सामग्रीभेदाद्भिन्नमनुमानमध्यक्षादिति चेत् तत एव श्रुतं.ताभ्यां भिन्नमस्तु विशेषाभावात्॥ शब्दलिंगाक्षसामग्रीभेदाद्येषां प्रमात्रयं / तेषामशब्दलिंगाक्षजन्मज्ञानं प्रमांतरम् // 174 // योगिप्रत्यक्षमप्यक्षसामग्रीजनितं न हि। सर्वार्थागोचरत्वस्य प्रसंगादस्मदादिवत् // 15 // ___ न हि योगिज्ञानमिंद्रियजं सर्वार्थग्राहित्वाभावप्रसंगादस्मदादिवत्। न हींद्रियैः साक्षात्परंपरया वा सर्वेर्थाः सकृत् संनिकृष्यंते न चासंनिकृष्टेषु तज्ज्ञानं संभवति। योगजधर्मानुग्रहीतेन मनसा सर्वार्थज्ञानसिद्धरदोष इति ___ अनुमान से जान लिये गये सामान्य से पुन: दूसरे विशेष को जानने के लिए अनुमान किया जाता है और उस दूसरे अनुमान से विशेष व्यक्ति में प्रवृत्ति होती है अत: अनुमान प्रमाण प्रवर्तक है ऐसा नहीं कहना चाहिए, क्योंकि इसमें अनवस्था दोष का प्रसंग आता है। विशेष में भी जो पीछे से अनुमान होगा वह सामान्य को विषय करने वाला ही होगा कारण कि सामान्यरूप से व्याप्ति का ग्रहण होता है, उसी प्रकार विशेष का अनुमान भी सामान्य रूप से होगा। पुन: उस अन्य विशेष को अनुमान करके जो ही अनुमान प्रवर्तक कहा जावेगा, वहाँ भी विशेष को जानने वाला वह अनुमान पुनः सामान्य को ही विषय करेगा और फिर सामान्य के द्वारा विशेष की सामान्यपने करके ही अनुमिति होगी। बहुत दूर जाकर भी सामान्य और विशेष दोनों को विषय करने वाला अनुमान स्वीकार करना पड़ेगा। उस अनुमान से प्रवृत्ति होना मानने पर उस सामान्य विशेष आत्मक वस्तु की ही प्राप्ति होना प्रसिद्ध हो जाता है। सामग्री के भेद से यदि अनुमान को प्रत्यक्ष से भिन्न मानोगे तो भिन्न-भिन्न उत्पादक सामग्री होने से ही श्रुतज्ञान भी उन प्रत्यक्ष और अनुमानों से भिन्न हो जायेंगे, भिन्न-भिन्न सामग्री होने का कोई अन्तर नहीं है। (शब्द, संकेतग्रहण आदि सामग्री आगमज्ञान की है और हेतु, व्याप्तिग्रहण, पक्षता यह अनुमान की सामग्री है। तथा इन्द्रिय, योग्य देश, विशद क्षयोपशम, प्रत्यक्ष की सामग्री है)। इस प्रकार शब्द, लिंग और इन्द्रिय आदि सामग्रियों के भेद से जिन वादियों के यहाँ प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम ये तीन प्रमाण माने गये हैं उन कापिलों के यहाँ जो ज्ञान शब्द, लिंग और अक्ष (इन्द्रिय) जन्य नहीं है, वह चौथा पृथक् प्रमाण मानना पड़ेगा। योगियों का सम्पूर्ण पदार्थों को युगपत् जानने वाला प्रत्यक्ष तो इन्द्रिय सामग्री से उत्पन्न नहीं हुआ है। योगी के प्रत्यक्ष को भी यदि इन्द्रियों से उत्पन्न हुआ माना जायेगा तो (अस्मदादिकों) अल्पज्ञानी हम लोगों के अल्पज्ञान समान सर्वज्ञ के प्रत्यक्ष को भी सम्पूर्ण अर्थों को विषय नहीं करनेपन का प्रसंग आयेगा। (इन्द्रियाँ तो सम्पूर्ण भूत, भविष्यत्, देशांतरवर्ती, सूक्ष्म आदि अर्थों को नहीं जान सकती हैं। केवल सम्बन्धित और वर्तमान को ही जान पाती हैं)॥१७४-१७५॥ योगी (केवलज्ञानियों) का ज्ञान इन्द्रियजन्य नहीं है अन्यथा सम्पूर्ण अर्थों के ग्राहकपने के अभाव का प्रसंग आता है, जैसे कि हम सारिखे छद्मस्थों का इन्द्रियजन्य ज्ञान सम्पूर्ण अर्थों को नहीं जान सकता