________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 106 द्वित्वनिर्देशस्याप्येवमविरोधात्। केवलापेक्षया सर्वेषामाद्यत्वेपि मत्यादीनां मतिश्रुतयोरिह संप्रत्यय: साहचर्यादिति चेन्न, मत्यपेक्षया श्रुतादीनामनाद्यताया अपि सद्भावान्मुख्याद्यतानुपपत्तेस्तदवस्थत्वात्। आद्यशब्दो हि यदाद्यमेव तत्प्रवर्तमानो मुख्यः, यत्पुनराधमनाद्यं च कथंचित्तत्र प्रवर्तमानो गौण इति न्यायात्तस्य गुणभावादाद्यता क्रमार्पणायाम्॥ बुद्धौ तिर्यगवस्थानान्मुख्यं वाद्यत्वमेतयोः। अवध्यादित्रयापेक्षं कथंचिन्न विरुध्यते // 2 // परोक्ष इति वक्तव्यमाद्ये इत्यनेन सामानाधिकरण्यादिति चेत्। अत्रोच्यतेपरोक्षमिति निर्देशो ज्ञानमित्यनुवर्तनात् / ततो मतिश्रुते ज्ञानं परोक्षमिति निर्णयः॥३॥ द्वयोरेकेन नायुक्ता समानाश्रयता यथा। गोदौ ग्राम इति प्रायः प्रयोगस्योपलक्षणात् // 4 // प्रमाणे इति वा द्वित्वे प्रतिज्ञाते प्रमाणयोः। प्रमाणमिति वर्तेत परोक्षमिति संगतौ // 5 // जो आदि में है, उसी में प्रवर्त्त आद्य शब्द मुख्य है। और जो पदार्थ फिर किसी अपेक्षा से आद्य और अनाद्य भी है, उसमें प्रवर्तमान आद्य शब्द गौण है। इस न्याय से उस श्रुतज्ञान को गौणभाव से आद्यपना है, क्योंकि सूत्र में पढ़े गये पाठ के क्रम की विवक्षा है। अत: द्विवचनान्त प्रयोग से आये शब्द से मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का ग्रहण होता है। अथवा बुद्धि में तिरछा अवस्थित कर देने से इन मतिश्रुत दोनों को अवधि आदि तीन की अपेक्षा कथंचित् मुख्य आद्यपना. विरुद्ध नहीं पड़ता है॥२॥ शंका : जब “आद्ये" ऐसा द्विवचनान्त प्रयोग है, तो इसके साथ समान अधिकरणपना होने से "परोक्षे” इस प्रकार द्विवचनान्त प्रयोग सूत्र में कहना चाहिए (लिंग, संख्या और वचन के समान होने पर ही समानाधिकरण अच्छा बनता है)। समाधान : यहाँ मति आदि सूत्र में पड़े हुए 'ज्ञान' इस पद की अनुवृत्ति हैं, वह एक वचन है। नपुंसक लिंग है इसलिए ज्ञान के समान अधिकरण होने से परोक्षं-ऐसा एक वचन निर्देश सूत्र में कहा है अत: मति और श्रुत दो ज्ञान परोक्ष हैं। इस प्रकार निर्णय हो जाता है। दो उद्देश्यों का भी एक विधेय के साथ समानाधिकरणपना अयुक्त नहीं है, जैसे कि “गोदौ ग्रामः" / गोदौ नाम के दो ह्रद हैं; उन दोनों के निकट होने वाला ग्राम है वह एक ग्राम गोदौ है (यहाँ ग्राम शब्द जातिवाचक है। गोदौ के समान द्विवचन नहीं हुआ। यदि जातिवाचक न होता तो उसके लिंग और संख्या अवश्य प्राप्त होते जैसे कि गोदौ रमणीयौ। अत: ग्राम एक वचन है) इस प्रकार के बाहुल्यपने से प्रयोगों का उपलक्षण होता है यदि “प्रमाणे” ऐसे द्विवचनान्त प्रयोग की प्रतिज्ञा की जाएगी तो फिर भी दो मति श्रुत प्रमाणों में एकवचन प्रमाण की अनुवृत्ति करनी पड़ेगी। तभी परोक्ष प्रमाण के साथ मति और श्रुत संगत हो सकते हैं॥३-४-५॥ भावार्थ : आद्ये परोक्षे कहना, फिर परोक्षे प्रमाणं कहना, इसकी अपेक्षा प्रथम से.ही “आद्ये परोक्षम्' कहना अच्छा है। इसमें लाघव है तथा सूत्र में लघुपना बहुत प्रशंसनीय गुण है।