________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 115 तदस्तीति कुतोऽवगम्यत इति चेत्;एतच्चास्ति सुनिर्णीतासंभवद्बाधकत्वतः / स्वसंवित्तिवदित्युक्त व्यासतोन्यत्र गम्यताम् // 7 // धर्म्यत्रासिद्ध इति चेन्नोभयसिद्धस्य प्रत्यक्षस्य धर्मित्वात्। तद्धि केषांचिदशेषगोचरं क्रमं करणातीतमिति साध्यतेऽकलंकत्वान्यथानुपपत्तेः। न चाकलंकत्वमसिद्धं तस्य पूर्वं साधनात्। प्रतिनियतगोचरत्वं विज्ञानस्य प्रतिनियतावरणविगमनिबंधनं भानुप्रकाशवत् नि:शेषावरणपरिक्षयात् नि:शेषगोचरं सिद्ध्यत्येव / तत: एवाक्रम तत्क्रमस्य कलंकविगमक्रमकृतत्वात्। युगपत्तद्विगमे कुतो ज्ञानस्य क्रमः स्यात्। करणक्रमादिति चेन, तस्य केवलज्ञान की सिद्धि है योगियों का प्रत्यक्ष केवलज्ञान जगत् में है, यह कैसे जाना जाता है? इस प्रकार पूछने पर उत्तर दिया गया है कि यह मुख्य प्रत्यक्षज्ञान स्वसंवित्ति के समान असंभव बाधक होने से निर्णीत है। अर्थात्-इसकी सिद्धि में किसी प्रकार का बाधक प्रमाण नहीं है। इस प्रकार संक्षेप में प्रत्यक्ष प्रमाण का कथन कहा है। इसका विशेष विस्तार अन्य ग्रन्थों से जानना चाहिए // 7 // . इस उक्त अनुमान में धर्मी (पक्ष) असिद्ध है, ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि वादी प्रतिवादी दोनों द्वारा सिद्ध, प्रत्यक्ष प्रमाण यहाँ धर्मी (पक्ष)है। ____ वह किन्हीं योगियों का प्रत्यक्ष सम्पूर्ण पदार्थों को युगपत् विषय करने वाला है, क्रमरहित है और इन्द्रियों की अधीनता से अतिक्रान्त है। इस प्रकार धर्मों से युक्त सिद्ध किया जाता है क्योंकि उस ज्ञान का निर्दोषपना अन्य प्रकारों से नहीं बन सकता है। यहाँ हेतु की अकलंकता (निर्दोषत्व) असिद्ध नहीं है, क्योंकि पूर्व प्रकरणों में उसको साध चुके हैं। प्रत्येक नियत पदार्थ के गोचरत्व ज्ञान को रोकने वाले ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम को कारण मानकर उत्पन्न हुआ विज्ञान दीपक के समान प्रत्येक नियत पदार्थ को विषय करता है किन्तु सम्पूर्ण ज्ञानावरण के क्षय हो जाने से उत्पन्न हुआ केवलज्ञान सूर्य प्रकाश के समान सम्पूर्ण पदार्थों को विषय करने वाला सिद्ध हो ही जाता है अतः सम्पूर्ण ज्ञानावरण के क्षय हो जाने से ही वह ज्ञान क्रम से पदार्थों को जानने वाला नहीं है किन्तु युगपत् सम्पूर्ण पदार्थों को जान लेता है। अल्पज्ञों के आवरणरूप कलंकों का दूर होना क्रम से है। अत: छद्यस्थों का ज्ञान नियत अर्थों को जानने वाला क्रम से होता है किन्तु पूज्य पुरुषों के जब युगपत् उस आवरण का विध्वंस हो जाता है तो फिर ज्ञान का क्रम किससे होगा? कारण के न होने पर कार्य नहीं होता है अतः सर्वज्ञ का प्रत्यक्ष क्रमरहित है। . इन्द्रियों की प्रवृत्ति क्रम से होती है अतः सर्वज्ञ का ज्ञान भी क्रम से पदार्थों को जानता है-ऐसा नहीं कहना चाहिए, क्योंकि वह केवलज्ञान इन्द्रियों से अतिक्रान्त है। जो ज्ञान एकदेश से विशद है या सर्वथा अविशद है, वही इन्द्रिय और मन की अपेक्षा रखने वाला सिद्ध है। . . किन्तु जो ज्ञान फिर सम्पूर्ण विषयों को एक ही समय में अधिक स्पष्टरूप से विषय करने वाला है, वह बहिरंग अन्तरंग इन्द्रियों की अपेक्षा नहीं करता है, तथा इस प्रकार का प्रत्यक्षज्ञान बाधकों की संभावमा से युक्त नहीं है क्योंकि उस सर्वज्ञपने को विषय नहीं करनेवाले प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों के द्वारा प्रत्यक्षज्ञान में बाधा उत्पत्ति का विरोध है (अर्थात् जो ज्ञान जिस विषय में प्रवृत्ति नहीं करता है, वह