________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 249 सामान्यादेकं एवान्यथानुपपत्तिनियमलक्षणोर्थ इति न किंचिद्विरुद्धमुत्पश्यामः / षड्विधो हेतुः कुतो न निवार्यत इत्याह;केवलान्वयिसंयोगी वीतभूतादिभेदतः। विनिर्णीताविनाभावहेतूनामत्र संग्रहात् // 335 // न हि केवलान्वयिके वलव्यतिरेक्यन्वयव्यतिरेकिणः संयोगिसमवायिविरोधिनो वा वीतावीततदुभयस्वभावा चाभूतादयो वा कार्यकारणानुभवोपलंभनातिक्रमं नियता नियतहेतुभ्योन्ये भवेयुरविनाभावनियमलक्षणयोगिनां तेषां तत्रैवांतर्भवनादिति प्रकृतमुपसंहरन्नाह॥ अन्यथानुपपत्त्येकलक्षणं साधनं ततः। सूक्तं साध्यं विना सद्भिः शक्यत्वादिविशेषणं // 336 / / एवं हि यैरुक्तं “साध्यं शक्यमभिप्रेतमप्रसिद्धं ततो परं। साध्याभासं विरुद्धादिसाधनाविषयत्वतः॥" नैयायिक और जैनों के द्वारा स्वीकृत छह प्रकार का हेतु निवारित कैसे नहीं किया जाता है ? ऐसी जिज्ञासा होने पर आचार्य कहते हैं - केवलान्वयी, संयोगी, वीत, भूत, आदि भेदों से स्वीकृत सभी हेतुओं का इन छह हेतुओं में संग्रह हो जाता है क्योंकि उन केवलान्वयी आदि का अपने साध्य के साथ अविनाभाव विशेषरूप से निर्णीत है। अर्थात् जिन हेतुओं का अपने साध्य के साथ अविनाभावरूप नियम निश्चित हो रहा है वे वीत आदि कोई : भी हेतु इन दो, या छह भेदों में ही गर्भित हो जाते हैं // 335 / / ___ यद्यपि केवलान्वयी केवलव्यतिरेकी, अन्वव्यतिरेकी तथा संयोगी, समवायी, विरोधी अथवा वीत, अवीत, वीतावीत दोनों स्वभाववाले तथा भूत, अभूत, भूताभूत रूपसे माने गये हेतुओं के भेद कार्य, कारण, अकार्यकारण उपलब्धियों का अतिक्रमण नहीं करते हैं जिससे कि नियमयुक्त हो रहे हेतुओं से पृथक् हो जाते। अविनाभाव नामक नियमरूप लक्षण से युक्त हो रहे उन केवलान्वयी आदि का उन पूर्ववत् आदि में ही अन्तर्भाव हो जाता है। इस प्रकार दो कारिकाओं के द्वारा पूर्ववत् , शेषवत् , सामान्यतो दृष्ट का व्याख्यान जो कारण, कार्य और अकार्यकारण किया गया है, तदनुसार इन कारण हेतु आदि में ही सम्पूर्ण केवलान्वयी, भूत आदि का अन्तर्भाव हो जाता है। इस प्रकार प्रकरण प्राप्त व्याख्यान का उपसंहार करते हुए आचार्य अन्तिम निर्णय करते हैं कि ___ सज्जन पुरुषों ने शक्य, अभीष्ट, अप्रसिद्ध इन तीनों विशेषणों से युक्त साध्य को अविनाभावी .. अन्यथानुपपत्ति एक लक्षण वाला साधन कहा है (हेतु कहा है)॥३३६॥ भावार्थ : अन्यथानुपपत्ति ही है लक्षण जिसका, ऐसा हेतु समीचीन हेतु होता है। साधने के लिए शक्यपना और वादी को अभीष्ट तथा प्रतिवादी को अप्रसिद्ध इन तीन विशेषणों से युक्त साध्य के बिना जो हेतु नहीं रहता है, वह ही सज्जनों के द्वारा समीचीन हेतु कहा गया है। अथवा अन्यथानुपपत्तिनामक एक ही लक्षण से युक्त समीचीन हेतु होता है और शक्य, अभिप्रेत, अप्रसिद्ध इन तीन विशेषणों से युक्त साध्य * होता है।