________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 258 तदप्रमाणकं तावदकिंचित्करमीक्ष्यते। सप्रमाणकता तस्य व प्रमाणाप्रसाधने // 375 // नन्विष्टसाधनात् संति प्रमाणानीति भाषणे। समः पर्यनुयोगोयं प्रमा शून्यत्ववादिनः // 376 // तदिष्टसाधनं तावदप्रमाणमसाधनम् / स्वसाध्येन प्रमाणं तु न प्रसिद्धं द्वयोरपि // 377 / / तदसंगतमिष्टस्य संविन्मात्रस्य साधनम्। स्वयं प्रकाशनं ध्वस्तव्यभिचारं हि सुस्थितं // 378 // स्वसंवेदनमध्यक्षं वादिनो मानमंजसा। ततोन्येषां प्रमाणानामस्तित्वस्य व्यवस्थितिः॥३७९॥ नन्विष्टसाधनं धर्मिप्रमाणैरपरैर्युतम्। तदिष्टसाधनत्वस्येतरथानुपपत्तितः // 380 // एवं प्रयोगतः सिद्धिः प्रमाणानामनाकुलम् / तत्सत्ता नैव साध्या स्यात्सर्वत्रेति परे विदुः॥३८१॥ नहीं होती है, तब तक उस शून्यवाद को प्रामाणिकता कैसे आ सकती है। शून्यवाद के द्वारा प्रमाण से शून्यवाद की सिद्धि नहीं हो सकती है, क्योंकि शून्यवादी के प्रमाण भी नहीं है।।३७४-३७५॥ . इष्ट की सिद्धि होने से शून्यवाद प्रमाण है, यह सिद्ध होता है। इस प्रकार शून्यवादी के कहने पर आचार्य कहते हैं कि प्रमाण का शून्यपना मानने वाले वादी की ओर से यही पर्यनुयोग समान रूप से लागू होता है क्योंकि शून्यवादियों के तो इष्ट का साधन अप्रमाण (प्रमाणशून्यपना) है और असाधन है अत: इष्टसाधन द्वारा वस्तुभूत प्रमाणों की सिद्धि नहीं हो सकी है। _नैयायिक, शून्यवादी इन दोनों के यहाँ भी अपने-अपने साध्य के साथ प्रमाणपना प्रसिद्ध नहीं है जिससे उनके शून्यवाद की सिद्धि हो सके॥३७६-३७७॥ तथा शून्यवादी बौद्धों का कहना पूर्वापरसंगति से रहित है, क्योंकि अकेले शुद्धसंवेदन का ही साधन करना उन्हें अभिप्रेत है जो कि स्वयं प्रकाशित और व्यभिचार दोषों से रहित स्थित है। तब स्वसंवेदन नामका प्रत्यक्ष ही वादी के यहाँ निर्दोष प्रमाण सिद्ध होता है, अत: अन्य इन्द्रिय प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों के अस्तित्व की भी व्यवस्था हो जाती है अर्थात्-जो प्रमाण, प्रमेय, स्व, पर, वादी, प्रतिवादी, स्वपक्षसाधन, परपक्षदूषण, सम्यग्ज्ञान, मिथ्याज्ञान आदि कुछ भी नहीं मानता है, वह तो स्वयं भी नहीं है अतः इष्टतत्त्व के साधने से प्रमाणों की सिद्धि का आपादन (ग्रहण) करना समुचित ही है।।३७८-७९|| यहाँ कोई प्रतिवादी प्रश्न करता है कि जिन शून्यवादियों के यहाँ इष्टसाधन हेतु की प्रसिद्धि नहीं है, उनके प्रति इष्टसाधन को धर्मी बनाकर फिर दूसरे प्रमाणों से युक्त होना सिद्ध करोगे, अन्यथा उस इष्ट