________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 128 करणजमेव प्रत्ययमिति नियमः सिद्ध्येत् // तत्स्वार्थव्यवसायात्मविधा प्रत्यक्षमंजसा। ज्ञानं विशदमन्यत्तु परोक्षमिति संग्रहः॥३८॥ मतिः स्मृति: संज्ञा चिंताभिनिबोध इत्यनांतरम् // 13 // किमर्थमिदमुच्यते। मतिभेदानां मतिग्रहणेन ग्रहणादन्यथातिप्रसंगात्॥ मत्यादिष्ववबोधेषु स्मृत्यादीनामसंग्रहः / इत्याशंक्याह मत्यादिसूत्रं मत्यात्मनां विदे॥१॥ मतिरेव स्मृति: संज्ञा चिंता वाभिनिबोधकम् / नार्थांतरं मतिज्ञानावृतिच्छेदप्रसूतितः॥२॥ यथैव वीर्यांतरायमतिज्ञानावरणक्षयोपशमान्मतिरवग्रहादिरूपा सूते तथा स्मृत्यादिरपि ततो मत्यात्मकत्वमस्य वेदितव्यम्॥ सर्वज्ञ प्रत्यक्ष के अभाव का निश्चय नहीं है अत: इन्द्रियजन्य ज्ञान ही प्रत्यक्ष है, ऐसा मीमांसकों का नियम करना सिद्ध नहीं होता है। स्व और अर्थ का विशद निश्चय करने वाला प्रत्यक्ष ज्ञान अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान के भेदों से तीन प्रकार का है। साक्षात्रूप से स्वार्थ को विशद जानने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष है और अन्य अविशद ज्ञान परोक्ष हैं, इस प्रकार सभी सम्यग्ज्ञानों का प्रत्यक्ष और परोक्ष दो प्रमाणों में संग्रह हो जाता है॥३८॥ अब मतिज्ञान के प्रकारों को प्रगट करने के लिए (आचार्य) अग्रिम सूत्र कहते हैं - मतिज्ञान, स्मरण ज्ञान, प्रत्यभिज्ञान, व्याप्तिज्ञान और अनुमान इत्यादि प्रकार के ज्ञान अर्थान्तर नहीं हैं। ये सर्व मतिज्ञान ही हैं। मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम का निमित्त पाकर अर्थ की उपलब्धि करना सबमें एक सा है॥१३॥ शंका : यह सूत्र किस प्रयोजन को साधने के लिए कहा गया है? . समाधान : मतिज्ञान के भेद-प्रभेदों का मति के ग्रहण करने से ग्रहण होता है अन्यथा (यदि मति शब्द को ग्रहण नहीं किया जायेगा वा मतिशब्द से यदि इन्द्रिय, अनिन्द्रियजन्य विशद प्रत्यक्षों को ही पकड़ा जायेगा तो) अतिप्रसंग दोष आता है। मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान-इन पाँच ज्ञानों में स्मृति, प्रत्यभिज्ञान आदि का संग्रह नहीं हो सकता है, ऐसी आशंका होने पर श्री उमा स्वामी आचार्य ने स्मृति आदि को मतिज्ञान रूप समझाने के लिए इस “मतिः स्मृति: संज्ञा चिंताभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्" सूत्र को कहा है। स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान ज्ञान ये सब मतिज्ञान ही हैं, मतिज्ञान से सर्वथा भिन्न नहीं हैं क्योंकि अंतरंगकारण मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से स्मृति आदि की उत्पत्ति होती है।।१-२॥ ___ जिस प्रकार वीर्यान्तराय और मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणास्वरूप मतिज्ञान उत्पन्न होता है, उसी प्रकार स्मृति आदि भी ज्ञान वीर्यान्तराय और मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होते हैं अतः स्मृति आदि को मतिज्ञान ही समझना चाहिए।