________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 199 हेतोरसिद्धादित्रयव्यवच्छेदानुपपत्तेः। तत्र तस्य तद्भावादुपपन्नं वचनमिति चेत्रूपत्रयस्य सद्भावात्तत्र तद्वचनं यदि। निश्चितत्वस्वरूपस्य चतुर्थस्य वचो न किम् // 183 // त्रिषु रूपेषु चेद्रूपं निश्चितत्वं न साधने। नाज्ञाता सिद्धता हेतो रूपं स्यात्तद्विपर्ययः॥१८४॥ पक्षधर्मत्वरूपं स्याज्ज्ञातत्वे हेत्वभेदिनः। हेतोरज्ञानतेष्टा चेन्निश्चितत्वं तथा न किम् // 185 // हेत्वाभासेपि तद्भावात्साधारणतया न चेत् / धर्मांतरमिवारूपं हेतोः सदपि संमतम् // 186 // हतासाधारणं सिद्ध साधनस्यैकलक्षणं / तत्त्वतः पावकस्यैव सोष्णत्वं तद्विदां मतम् // 187 // यो यस्यासाधारणे निश्चित: स्वभावः स तस्य लक्षणं यथा पावकस्यैव सोष्णत्वपरिणामस्तथा च हेतोरन्यथानुपपन्नत्वनियम इति न साधारणानामन्यथानुपपत्तिनियमविकलानां पक्षधर्मत्वादीनां हेतुलक्षणत्वं निश्चितं तत्त्वमात्रवत्॥ युक्त है। इस प्रकार बौद्धों के कहने पर जैनाचार्य कहते हैं कि उस हेतु में तीन रूपों का सद्भाव होने से यदि उन तीन रूपों का कथन करना मानते हो तो निश्चित स्वरूप चतुर्थ हेतु का कथन करना क्यों नहीं माना जाता है? बौद्ध कहता है कि तीन रूपों में निश्चितस्वरूप तो है ही अतः उसको हेतु से पृथक् नहीं रखा जाता है। जैनाचार्य कहते हैं कि ऐसा कहना भी उचित नहीं है, क्योंकि ऐसा कहने पर हेतु का रूप असिद्ध, अज्ञातासिद्ध और विपरीत हो जाता है // 183-184 // बौद्ध कहता है कि हेतु से अभिन्न होकर रहने वाले पक्षधर्मत्व आदि स्वरूप तो ज्ञात अनुमान के प्रयोजक हैं। हेतु के इन रूपों के अज्ञात होने पर हेतु का अज्ञातपना इष्ट किया है (यानी वह हेतु अज्ञात होकर असिद्ध है)। इस प्रकार बौद्धों के कहने पर तो चतुर्थ निश्चितपना भी हेतु का स्वरूप क्यों न होगा? यदि कहो कि निश्चितपना तो हेत्वाभास में भी विद्यमान है, अत: हेतु और हेत्वाभास में साधारणरूप से रह जाने के कारण वह निश्चितपना सम्यक् हेतु का रूप नहीं है। तब तो हेतु का विद्यमान पक्षधर्मत्व आदि कभी अन्य धर्मों के समान हेतु के रूप नहीं माने जाएंगे, क्योंकि वे हेत्वाभासों में भी मिल जाते हैं। एक अविनाभाव ही हेतु का निर्दोष स्वरूप है, खेद है कि फिर भी असाधारण हेतु मानते हैं, वास्तविक रूप से हेतु का असाधारण लक्षण एक अन्यथानुपपत्ति ही सिद्ध है। जिस प्रकार लक्ष्यलक्षण को जानने वाले विद्वानों के यहाँ अग्नि का लक्षण उष्णता सहितपना ही माना है॥ 185-186-187 // ___ जो स्वभाव जिसका असाधारण होकर निश्चित किया गया है, वह उसका लक्षण है (सम्पूर्ण लक्ष्यों में रहता हुआ जो अलक्ष्यों में नहीं व्यापता है, अलक्ष्यों में नहीं जाता है, वह असाधारण है) जैसे कि अग्नि का उष्ण सहितपना ही परिणाम होता है अत: अग्नि का लक्षण उष्णत्व है। उसी प्रकार हेतु का लक्षण साध्य के बिना हेतु का नहीं होना रूप अन्यथानुपपत्ति नियम है। अन्यथानुपपत्तिरूप नियम से रहित और हेत्वाभासों में भी साधारणरूप से पाये जाने वाले पक्षवृत्तित्व, सपक्षवृत्तित्व, विपक्षव्यावृत्ति आदि को हेतु का लक्षण निश्चित नहीं किया गया है। जैसे कि केवल तत्त्व ही हेतु का लक्षण नहीं है, क्योंकि तत्त्व तो पक्ष, साध्य,