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अन्य. यो. व्य. श्लोक ८] स्याद्वादमञ्जरी
साम्प्रतमक्षरार्थो व्याक्रियते। सतामपीत्यादि । सतामपि-सद्बुद्धिवेद्यतया साधारणानामपि, षण्णां पदार्थानां मध्ये क्वचिदेव केपुचिदेव पदार्थेषु सत्ता-सामान्ययोगः, स्याद्भवेत, न सर्वेष । तेषामेषा वाचोयक्तिः सदिति । यतो "द्रव्यगुणकर्मसु सा सत्ता" इति वचनाद यत्रैव सत्प्रत्ययस्तत्रैव सत्ता । सत्प्रत्ययश्च द्रव्यगुणकर्मस्वेव, अतस्तेष्वेव, सत्तायोगः । सामान्यादिपदार्थत्रये तु न, तदभावात् । इदमुक्तं भवति । यद्यपि वस्तुस्वरूपं अस्तित्वं सामान्यादित्रयेऽपि विद्यते तथापि तदनुवृत्तिप्रत्ययहेतुर्न भवति । य एव चानुवृत्तिप्रत्ययः स एव सदितिप्रत्यय इति, तदभावाद् न सत्तायोगस्तत्र । द्रव्यादीनां पुनस्त्रयाणां पटपदार्थसाधारणं वस्तुस्वरूपम अस्तित्वमपि विद्यते । अनुवृत्तिप्रत्ययहेतुः सत्तासम्बन्धोऽप्यस्ति । निःस्वरूपे शशविषाणादौ सत्तायाः समवायाभावात् ।।
सामान्यादित्रिके कथं नानुवृत्तिप्रत्ययः इति चेद्, बाधकसद्भावादिति ब्रूमः । तथाहि । सत्तायामपि सत्तायोगाङ्गीकारे अनवस्था। विशेषेषु पुनस्तदभ्युपगमे व्यावृत्तिहेतुत्वलक्षणतत्स्वरूपहानिः। समवाये तु तत्कल्पनायां सम्बन्धाभावः। केन हि सम्बन्धेन तत्र सत्ता सम्बध्यते, समवायान्तराभावात् । तथा च प्रामाणिकप्रकाण्डमुदयनः
"व्यक्तेरभेदस्तुल्यत्वं सङ्करोऽथानवस्थितिः।
रूपहानिरसम्बन्धो जातिबाधकसङ्ग्रहः ॥ द्वारा अपने कारणोंसे उत्पन्न हुआ पटादि आधार्य तन्तु आदिके आधार से रहता है, वह समवाय सम्बन्ध है। अतएव समवाय भी द्रव्य आदिसे विलक्षण होने के कारण भिन्न पदार्थ है।
'सतामपि क्वचिदेव सत्ता स्यात्'-सत् बुद्धिसे जानने योग्य छह पदार्थों में से कुछ पदार्थों में ही सत्ता सामान्य रहता है, सब पदार्थों में नहीं। कहा भी है, "द्रव्य, गुण और कर्ममें सत् प्रत्यय होता है", इसलिए द्रव्य, गुण, और कर्ममें ही सत्ता रहती है; सामान्य, विशेष और समवायमें सत्ता नहीं रहती, इसलिए उनमें सत् प्रत्ययका भी अभाव है । तात्पर्य यह है कि यद्यपि वस्तुका स्वरूप अस्तित्व सामान्य, विशेष और समवायमे रहता है, तथापि वह सामान्य, विशेष और समवायके अनुवृत्तिप्रत्यय ( सामान्यज्ञान ) का कारण नहीं है। तथा अनुवृत्तिप्रत्ययको ही सत्प्रत्यय कहते हैं। सामान्य आदिमें सत्प्रत्यय नहीं है, इसलिए इनमें सत्ता नहीं रहती। द्रव्य, गुण और कर्म इन तीन पदार्थों में समान रूपसे रहनेवाला वस्तुका स्वरूप अस्तित्व विद्यमान है, तथा अनुवृत्तिप्रत्ययका हेतु सत्तासम्बन्ध भी है, क्योंकि अस्तित्व स्वरूपसे रहित पदार्थों में शशविषागकी तरह सत्ताका समवायन हीं बन सकता, इसलिए द्रव्य, गुण और कर्ममें अस्तित्व और सत्तासम्बन्ध दोनों रहते है।
प्रतिवादी सामान्य, विशेष और समवायमें अनुवृत्तिप्रत्यय ( सामान्य ज्ञान ) क्यों नहीं होता है ? वैशेषिक-सामान्य आदिमें सामान्यज्ञान माननेमें बाधक प्रमाण हैं। क्योंकि 'सामान्य' में सत्ता स्वीकार करनेसे अनवस्था दोष आता है; अर्थात् एक सामान्यमें दूसरा और दूसरेमें तीसरा, इस तरह अनेक सामान्य मानने पड़ते हैं । तथा यदि 'विशेष' पदार्थमें सत्ता मानें, तो विशेषको व्यावृत्तिका कारण नहीं कह सकते । इसी तरह समवायमें सत्ता माननेसे सम्बन्धका अभाव होता है। क्योंकि समवायमें सत्ता कौनसे सम्बन्धसै रहेगी, दूसरा कोई समवाय हम मानते नहीं। प्रकाण्ड नैयायिक उदयनाचार्यने भी कहा है
"व्यक्तिका अभेद, तुल्यत्व, संकर, अनवस्था, रूपहानि और असम्बन्ध-ये छह जाति (सामान्य) के बाधक हैं।"
(भाव यह है कि (१) सामान्य एक व्यक्तिमें नहीं रहता। जैसे आकाशमें आकाशत्व-सामान्य नहीं
१. उदयनाचार्यविरचितकिरणावल्यां द्रव्यप्रकरणे पृष्ठ १६१ । अस्य व्याख्या-(१) आकाशत्वं न जातिः । व्यक्त्य॑क्यात् । (२) घटकलशत्वे न जातिः । व्यक्तितुल्यत्वात् । (३) भूतत्वमूर्तत्वे न जातिः ।