Book Title: Syadvada Manjari
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां
श्लोक ३२ समवान्वात् तमसः
[हमशब्दानुशासन ७-३-८०] अदेवे देवबुद्धिर्या गुरुधीरगुरी च या। अधर्म धर्मबुद्धिश्च मिथ्यात्वं तद्विपर्ययात् ॥
[हेमचन्द्र-योगशास्त्र २-३ ] पाणवहाईआणं पावट्ठाणाण जो उ पडिसेहो। झाणज्झयणाईणं जो य विही एस धम्मकसो॥ वज्झाणुट्ठाणेणं जेण ण बाहिज्जए तयं णियमा। संभवइ य परिसुद्धं सो पुण धम्मम्मि छेउत्ति ।। जीवाइभाववाओ बंधाइपसाहगो इहं तावो। एएहिं परिसुद्धो धम्मो धम्मत्तणमुवेइ ॥ [हरिभद्र-पंचवस्तुक चतुर्थद्वार]
२६८ नोट-इन अवतरों के अतिरिक्त मल्लिपेणने स्याद्वादमंजरीमें हरिभद्रकी न्यायप्रवेशवृत्ति, हेमचन्द्रको प्रमाणमीमांसा, देवसरिका स्याद्वादरत्नाकर, रत्नप्रभाचार्यकी स्याद्वादरत्नावतारिका आदि ग्रन्थोंके वाक्योंका शब्दशः उपयोग किया है। मल्लिपेणने इन वाक्योंको अवतरण रूपमें उल्लेख नहीं किया।

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