Book Title: Syadvada Manjari
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 430
________________ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां पृष्ठ १८० २०४ १९७ ९१ ११७ नास्तिक १९२ परमाणु १८,७०-७१,१५७,१६० निकाचितकर्म ३१ परमाणुपाकजरूप निग्रहस्थान ७७ परमेष्ठी (पंच) २६६ -द्वाविंशतिविधम् ८५ परलोक १८० नित्यानित्यपक्षयोः दूषणानि १५,२७,२३३,२३५ -परलोकनिषेध १९४ -प्रदीपाद्वौ नित्यानित्यत्वसिद्धिः १६-१८ परलोकिन् -आकाशादौ नित्यानित्यत्वसिद्धिः १८-२० पर्याय -नित्यलक्षणम् १९ पर्यायास्तिकनय (पर्यायाथिकनय ) १२०,२०५ -पातंजलयोगप्रशस्तकारमतानुसारेण पशुवध नित्यानित्यवस्तुकल्पना २१-२२ पातंजलटीकाकार २३९ -एकान्तनित्यानित्यपक्षयोः अर्थक्रियाकारित्वाभावः पारमार्प (सांख्य ) ९२ २२-२६ पित ८८,९५,९७ -निन्यानित्यवादिनोः पूर्वपक्षी २३३-२३४ पिण्ड ९७ नित्यशब्दवादिन् १२८ पिशाच १९७,२०९ नित्यपरोक्षज्ञानवादिन् (मीमांसकभट्ट) १०३ पिशाचकी नियोग १३३ पुराण ९०,१३२ निरन्वयविनाश १५१ पुरोडाश ( विप्रेभ्यः) निर्विकल्प ( प्रत्यक्ष) ११४ पुरुष १३८-१३९ निलयन २४३ पुरुषाद्वैत निशोथचूर्णि ६ पौरुषेय ५,९२,९८ निःश्रेयस १७९ -वेदस्यापौरुषेयत्वखण्डनम् निस्स्वभावत्व ( अनिर्वाच्यत्व ) ११२ पंचलिंगीकार ९० नैगमसंग्रहव्यवहारऋजुसूत्रशब्दसमभिरूढ प्रकरणसम वंभूताः नयाः २४३-२५२ प्रकृति १३५,१४१ नैयायिक ७७, २४८ प्रज्ञापना २४२ न्यायकुमुदचन्द्रोदय प्रतिसंक्रम न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि प्रतिसंवर १४३ न्यायविन्दुसूत्र १४६ प्रतिसंधेयप्रतिसंधायकभाव १८१ न्यायविन्दुटीका १४६ प्रथमद्वात्रिंशिका ( अयोगव्यवच्छेदाभिधान) ९ न्यायभूषणसूत्रकार प्रदीपकलिका १८६ न्यायवातिक प्रदेश ७१,२०१ न्यायावतार २५२ -प्रदेशाष्टकनिश्चलता प्रमाण ७८,७९,१६९,१७७,२४०,२५१ -नैयायिकमते प्रमाणलक्षणम् पतंजलि १३७,१३९ -जैनमते प्रमाणम् २५१,२५२ ४८,५२,५४,५६,७८,८५ -शन्यवादिमते प्रमेयाभावे प्रमाणस्या-वैशेषिकमते षट्पदार्थाः ४८-५१ प्यभाव १६९-१७० -अक्षपादमते पोडशपदार्थाः ७८,८५ प्रमाणफल १४४,१४८ परब्रह्म ११४ -बौद्धमते प्रमाणफलयोरैक्यम् १४८ परमपुरुष ११६ -नैयायिकमते प्रमाणात प्रमाणफलं भिन्नं: १४८ ९८ २९ १३४ ७८ २०१ पदार्थ

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