Book Title: Syadvada Manjari
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 441
________________ ३१६ ३४० -UWA २९९ परिशिष्टोंके विशप शब्दोंकी सूची ( ११) -दर्शनोंमें ईश्वर संबंधी मान्यता ३२६ -आत्मवादियोंके सिद्धांत ३१५ -ईश्वरके अस्तित्वमें तीन मुख्य प्रमाग ३२६ -पंचस्कंध रूप आत्मा -इन प्रमाणोंकी समीक्षा (टि.) ३२७ -विज्ञानप्रवाह और आधुनिक मानसशास्त्र -ईश्वरके संबंधमें शंका-समावान ३२८ (टि.) ३१६ -आधुनिक पाश्चिमात्य विद्वानोंका मत ३२९ -भवसंतति -न्यायवैशेषिक साहित्य ३३० -बौद्ध साहिन्यमे वात्मा संबंधी चार प्रदेश २८८-२८९ मान्यतायें ३१८-३२१ -प्रदेश और अवयव २८८ मीमांसादर्शन (पूर्वमीमांसा) ३३९-३४५ -आत्माके प्रदेश २८८ -मीमांसकोंके आचार विचार ३३९ -प्रदेशोंमें संकोच-विस्तार २८९ -मीमांसक सिद्धांत ३३९-३४३ -आत्माका मध्यमपरिणाम २८९ -वेदका अपौरुपयेत्व ३४० -रामानुजके सिद्धांतके साथ तुलना २८९ वेद और नैयायिक आदि दर्शन (टि.) प्राण -मीमांसक और जैन २९९-३०० ३४३-४ -विविध अर्थ २९९ -कुमारिलभट्ट और अनेकांतवाद -द्रव्यप्राण-भावप्राण -मीमांसादर्शनके मुख्य प्ररूपक ३४५ -सिद्धोंके प्राण ३०० वेदान्तदर्शन ( उत्तरमीमांसा ) २४६-३४७ बौद्धदर्शन ३०३-३२१ -वेदान्ती साधुओंका जाचार विचार ३४६ -बौद्धोंके सिद्धांत और आचार विचार ३०३ -वेदान्त दर्शनकी व्यापकता -वेदान्त दर्शनका साहित्य -मुख्य सम्प्रदाय ३४६-७ सौत्रांत्रिक आदि सम्प्रदायोंका समय (टि.) -वेदान्त दर्शनकी शाखायें ३४७ -सौत्रांतिकोंके सिद्धांत और उनके -शंकरका मायावाद तथा विज्ञानवाद और शून्यवाद ३४८ आचार्य ३०४,३०५ -वैभाषिक ( सर्वास्तिवादी) २९०-२९२ -सौत्रांतिक और वैभाषिकों के समान -तीनलोक २९० -वैदिकलोक सिद्धांत २९१ -बौद्धलोक -शून्यवाद (मध्यमवाद-नैरात्म्यवाद ) २९१ ३०८ सांख्ययोगदर्शन ३३२-३३८ -शंका-समाधान पूर्वक प्ररूपण -शून्यवाद और स्याद्वाद (टि.) ३०८ -सांख्य, योग, जैन और बोद्ध ३३२ -शून्यवादके मुख्य प्ररूपक आचार्य ३११ -श्रमण और ब्राह्मण संस्कृति ३३२ -विज्ञानवाद ( योगाचार) ३१२-३१४ -सांख्य और योगदर्शन -शून्यवाद और विज्ञानवाद (टि.) ३१२ -सांख्योंके जाचार विचार ३३३-३३५ -विज्ञानवादका शंका-समाधान -सांख्योंका वेदोंको न मानना ३३४ पूर्वक प्रतिपादन ३१३-३१५ -सांख्यदर्शनके मुख्य प्ररूपक ३३५ -नैरात्म्यवाद और आत्मवाद ३१३-२१, -योगदर्शन और उसका साहित्य ३३७ -आत्मा और आलयविज्ञान (टि.) ३१४ -जैन और बौद्ध दर्शनमें योग ३३७-३३८ -विज्ञानवादके मुख्य आचार्य ३१४-३१५ हिंसा २९२ -अश्वघोषका तथतावाद ३१५ -जैन शास्त्रों में हिंसा २९२ -अनात्मवाद ३१५ -संकल्पी हिंसा २९२ ००० लोक ard

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