Book Title: Syadvada Manjari
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 452
________________ मूल्य (१२) स्याद्वाद मंजरी--श्रीमल्लिषेणसूरिकृत मूल और श्रीजगदीशचन्द्रजी शास्त्री एम० ए०, पी-एच०डी० कृत हिन्दी अनुवाद सहित । न्यायका अपूर्व ग्रन्थ है। बड़ी खोजसे लिखे गये १३ परिशिष्ट मूल्य-दस रुपये ( १३ ) गोम्मटसार--कर्मकाण्ड-श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तिकृत मूल गाथायें, स्व. पं० मनोहरलालजी शास्त्रीकृत संस्कृतछाया और हिन्दीटोका । जैनसिद्धान्त-ग्रन्थ है। ( पुनः छप रहा है) (१४ ) समयसार--आचार्य श्रीकुन्दकुन्दस्वामी-विरचित महान अध्यात्मग्रन्थ, तीन टीकाओं सहित । ( अप्राप्य ) (१५) लब्धिसार (क्षपणासारगभित )--श्रीमन्नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्ती-रचित करणानुयोग ग्रंथ। पं० मनोहरलालजी शास्त्रीकृत संस्कृतछाया और हिन्दीभाषानुवाद सहित । अप्राप्य । (१६) द्रव्यानुयोगतर्कणा-श्रीभोजसागरकृत, अप्राप्य है । ( १७ ) न्यायावतार--महान् तार्किक श्री सिद्धसेनदिवाकरकृत मूल श्लोक, व श्रीसिद्धर्षिगणिकी संस्कृतटीकाका हिन्दी-भाषानुवाद जनदर्शनाचार्य पं० विजयमूर्ति एम० ए० ने किया है। न्यायका सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है। मूल्य-पांच रुपये। ) प्रशमरतिप्रकरण-आचार्य श्रीमदुमास्वातिविरचित मूल श्लोक, श्रीहरिभद्रसूरिकृत संस्कृतटोका और पं० राजकुमारजी साहित्याचार्य द्वारा सम्पादित सरल अर्थ सहित । वैराग्यका बहुत सुन्दर ग्रन्थ है। मूल्य-छह रुपये। (१९) सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र ( मोक्षशास्त्र)--श्रीमत् उमास्वातिकृत मूल सूत्र और स्वोपज्ञभाष्य तथा पं० खूबचन्दजी सिद्धान्तशास्त्रीकृत विस्तृत भाषाटोका । तत्त्वोंका हृदयग्राह्य गम्भीर विश्लेषण। मूल्य-छह रुपये। (२०) सप्तभंगीतरंगिणी-श्रीविमलदासकृत मूल और स्व. पंडित ठाकुरप्रसादजी शर्मा व्या-. करणाचार्यकृत भाषाटीका । नव्यन्यायका महत्वपूर्ण ग्रन्थ । अप्राप्य । (२१) इष्टोपदेश-श्रीपूज्यपाद-देवनन्दिआचार्यकृत मूल श्लोक, पंडितप्रवर आशाधरकृत संस्कृतटीका, पं० धन्यकुमारजी जैनदर्शनाचार्य एम० ए० कृत हिन्दीटीका, स्व० बैरिस्टर चम्पतरायजी कृत अंग्रेजीटीका तथा विभिन्न विद्वानों द्वारा रचित हिन्दी, मराठी, गुजराती एवं अंग्रेजी पद्यानुवादों सहित भाववाही आध्यात्मिक रचना। मूल्य-एक रुपया, पचास पैसे । (२२) इष्टोपदेश-मात्र अंग्रेजी टीका व पद्यानुवाद ।। मू०-पचहत्तर पैसे। (२३) परमात्मप्रकाश-मात्र अंग्रेजी प्रस्तावना व मूल गाथायें। मू०-दो रुपये। ( २४ ) योगसार-मूल गाथायें और हिन्दीसार । मू०-पचहत्तर पैसे। ( २५ ) कार्तिकेयानुप्रेक्षा-मात्रमूल, पाठान्तर और अंग्रेजी प्रस्तावना। मू०-दो रुपये, पचास पैसे । ( २६ ) उपदेशछाया आत्मसिद्धि-श्रीमद् राजचन्द्रप्रणीत । अप्राप्य । (२७) श्रीमदराजचन्द्र-श्रीमदके पत्रों व रचनाओंका अपूर्व संग्रह । तत्त्वज्ञानपूर्ण महान् ग्रन्थ है । म. गांधीजीकी महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना । ( नवीन परिवद्धित संस्करण पुनः छपेगा) अधिक मूल्यके ग्रन्थ मंगाने वालोंको कमीशन दिया जायेगा। इसके लिये वे हमसे पत्रव्यवहार करें।

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