Book Title: Syadvada Manjari
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 396
________________ वेदान्त परिशिष्ट (च) ( श्लोक १३) वेदान्तदर्शन वेदान्तदर्शनका निर्माण वेदोंके अंतिम भाग उपनिषदोंके आधारसे हुआ है, इसलिये इसे वेदान्त कहते हैं । वेदान्तको उत्तरमीमांसा अथवा ब्रह्ममीमांसा भी कहते हैं। यद्यपि पूर्वमीमांसा और उत्तरमीमांसा दोनों दर्शन मौलिक रूपसे भिन्न-भिन्न है, परन्तु बोधायनने इन दर्शनोंको 'संहित' कहकर उल्लेख किया है, तथा उपवर्षने दोनों दर्शनोंपर टीका लिखी है । इससे विद्वानोंका अनुमान है कि किसी समय पूर्वमीमांसा और उत्तरमीमांसा एक ही समझे जाते थे। "उत्तरमीमांसक साध अद्वैतवादी होते हैं। ये ब्राह्मण ही होते हैं । इनके नामके पीछे भगवत् शब्द लगाया जाता है । ये साधु कुटीचर, बहूदक, हंस और परमहंसके भेदसे चार प्रकारके होते हैं। कुटीचर लोग मठमें वास करते हैं, त्रिदण्डी होते हैं, शिखा रखते हैं, ब्रह्मसूत्र पहनते हैं, गृह-त्यागी होते हैं और यजमानोंके घर आहार लेते हैं, तथा एकाध बार अपने पुत्रके यहां भो भोजन करते हैं। बहूदक साधुओं का वेष कुटीचरोंके समान होता है। ये लोग ब्राह्मणों के घर नीरस भोजन लेते हैं, विष्णुको जाप करते हैं, और नदी के जलमें स्नान करते हैं। हंस साधु ब्रह्मसूत्र और शिखा नहीं रखते, कषाय वस्त्र धारण करते है, दण्ड रखते हैं, गांवमें एक रात और नगरमें तीन रात रहते हैं, चूंआ निकलना बंद होनेपर और आगके बुझ जानेपर ब्राह्मणोंके घर भोजन करते हैं और देश-देशमें भ्रमण करते हैं। जिस समय हंस आत्मज्ञानी हो जाते है, उस समय वे परमहंस कहे जाते हैं । ये चारों वर्गों के घर भोजन लेते हैं, इनके दंड रखनेका नियम नहीं है, ये शक्ति हीन हो जानेपर भोजन ग्रहण करते हैं।" वेदान्तके माननेवाले आजकल भी भारतवर्ष और उसके बाहर पाये जाते हैं । जब कि न्याय, वैशेषिक, सांख्य आदि अन्य भारतीय दर्शनोंकी परम्परा नष्ट-प्राय हो गई है। ई० स० १६४० में दाराशिकोहने उपनिषदोंका फारसी भाषामें अनुवाद किया था। जर्मन तत्त्ववेत्ता शोपेनहोर ( Schopenhauer ) ने औपनिषदिक तत्त्वज्ञानसे प्रभावित होकर भारतीय तत्त्वज्ञानकी मुक्तकंठसे प्रशंसा की है। शांकर वेदान्तके सिद्धांतोंको तुलना पश्चिमके आधुनिक विचारक ड्रडले (Bradley) के सिद्धांतोंके साथ की जा सकती है। वेदान्तसाहित्य वेदान्त दर्शनका साहित्य बहुत विशाल है। सर्वप्रथम वेदान्तदर्शन उपनिषदोंमें, और उपनिपदोंके बाद महाभारत और गीतामें देखनेमें आता है। तत्पश्चात् औडुलोमि, आश्मरथ्य, काशकृत्न,कार्णाजिनि, बादरि, आत्रेय और जैमिनी वेदान्तदर्शनके प्रतिपादक कहे जाते हैं। इन विद्वानोंका उल्लेख बादरायणने अपने ब्रह्मसूत्र में किया है । वेदान्तदर्शनके प्रतिपादकोंमें बादरायणके ब्रह्मसूत्रोंका नाम बहुत महत्त्वका है । ब्रह्मसूत्रोंको वेदान्तसूत्र अथवा शारीरकसूत्रोंके नामसे भी कहा जाता है । वेदान्तसूत्रोंके समयके विषय में विद्वानोंमें बहुत मतभेद है। वेदान्तसूत्रोंका समय ईसवी सन् ४०० के लगभग माना जाता है । वेदान्तसूत्रोंके ऊपर अनेक आचार्योने टीकायें लिखी है । बादरायणके पश्चात् ब्रह्मसूत्रोंके वृत्तिकार बोधायनका नाम सबसे पहले आता है। बहुतसे विद्वान बोधायन और उपवर्ष दोनोंको एक ही व्यक्ति मानते हैं। बोधायन ज्ञानकर्मसमुच्चयके सिद्धांतको मानते थे। द्रमिड़ाचार्यने छान्दोग्य उपनिषद्के ऊपर टीका लिखी थी। इस टीकाका उल्लेख छान्दोग्य उपनिषद्पर शांकरी टीकाके टीकाकार आनन्दगिरिने किया है। द्रमिडाचार्य 'भाज्यकार' के नामसे भी कहे जाते थे। १. गुणरत्लसूरि-षड्दर्शनसमुच्चय टीका ।

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