Book Title: Syadvada Manjari
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 348
________________ २९८ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां छत्तीस अध्ययन तथा नन्दिसूत्रका उल्लेख जान पड़ता है। कि यह सूत्र द्वादशांगके सूत्रबद्ध होनेके बाद लिखा गया है। इसपर अभयदेवसूरिकी टीका है। दिगम्बरोंके अनुसार इसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके अनुसार पदार्थोंके सादृश्यका ( समवाय ) कथन है । भगवती-इसे व्याख्याप्रज्ञप्ति भी कहते हैं । इस सूत्र में ४१ शतक है । इसमें श्रमण भगवान् महावीर और गौतम इन्द्रभूतिके बीच होनेवाले प्रश्नोत्तरोंका वर्णन है । इस अंगमें महावीरका जीवन, उनकी प्रवृत्ति, उनके शिष्य, उनके अतिशय आदि विषयोंका विशद वर्णन है । भगवतीमें पार्श्वनाथ, जामालि और गोशाल मक्खलिपुत्तके शिष्योंका वर्णन है । षोडश जनपदोंका यहाँ उल्लेख है। इसपर अभयदेवसूरिकी टीका है। दिगम्बरों के अनुसार इसमें जीव है या नहीं, वह अवक्तव्य है अथवा वक्तव्य, आदि साठ हजार प्रश्नोंके उत्तर हैं। ज्ञातृधर्मकथा-इसे संस्कृतमें ज्ञातृधर्मकथा, नाथधर्मकथा, तथा प्राकृतमें णायाधम्मकहा, णाणधम्मकहा और णाहधम्मकहा भी कहते हैं। इसमें उन्नीस अध्ययन और दो श्रुतस्कंध है । इसमें ज्ञातपुत्र महावीरकी कथाओंका उदाहरण सहित वर्णन है। प्रथम श्रुतस्कंधके सातवें अध्यायमें पन्द्रहवें तीर्थंकर मल्लिकुमारीकी और सोलहवेंअध्यायमें द्रोपदीकी कथा है। इसपर अभयदेवसूरिने टीका लिखी है । दिगम्बरोंके अनुसार इसमें तीर्थकरोंकी कथायें अथवा आख्यान-उपाख्यानोंका वर्णन है। उपासकदशा-इसके दस अध्ययनोंमें महावीरके दस उपासकों (श्रावकोंके )के आचारका वर्णन है। ये कथायें सुधर्मा जम्बूस्वामीसे कहते हैं। सातवें अध्यायमें गोशाल मक्खलिपुत्तके अनुयायी सद्दालपुत्तकी कथा आती है। सद्दालपुत्त आगे चलकर महावीरका अनुयायी हो गया था। उपासकदशामें अजातशत्रु राजाका उल्लेख आता है। इसपर अभयदेवकी टीका है। दिगम्बर ग्रन्थोंमें इसे उपासकाध्ययन कहा गया है। अन्तकृहशा-इसमें दस अध्यायोंमें मोक्षगामी साधु और साध्वियोंका वर्णन है। इसपर अभयदेवने टीका लिखी है। दिगम्बर ग्रन्थों में इस अंगमें प्रत्येक तीर्थकरके तीर्थमें दारुण उपसर्ग सहकर मोक्ष प्राप्त करनेवाले दस मुनियोंका वर्णन है । ___ अनुत्तरोपपादिकदशा-इसमें अनुत्तर विमानोंको प्राप्त करनेवाले मुनियोंका वर्णन है। यहां कृष्णकी कथा मिलती है । इसपर भी अभयदेवकी टीका है। प्रश्नव्यकरण-इसे प्रश्नव्याकरणदशा भी कहते हैं। इसमें दस अध्ययाय है। यहां पांच आश्रवद्वार और पांच संवरद्वारका वर्णन है। टीकाकार अभयदेवसूरि है। स्थानांग और नंदिसूत्रमें जो इस आगमका विषयवर्णन दिया गया है, उससे प्रस्तुत विषयवर्णन बिलकुल भिन्न है। दिगम्बरोंके अनुसार इसमें आक्षेप और विक्षेपसे हेतु-नयाश्रित प्रश्नोंका स्पष्टीकरण है। विपाकसूत्र-इसे कम्मविवायदसाओ भी कहा गया है। इसमें बीस अध्ययन है। बहुतसे दुखी मनुष्योंको देखकर इन्द्रभूति महावीरसे उन मनुष्योंके पूर्वभवोंको पूछते हैं। महावीर मनुष्योंके सुख-दुखके विपाकका वर्णन करते है । इसमें दस कथा पुण्यफलको, और दस कथायें पापफलकी पायी जाती हैं। इसपर अभयदेवसूरिकी टीका हैं। दृष्टिवाद-इसमें अन्य दर्शनोंके ३६३ मतोंका वर्णन था । यह सूत्र लुप्त हो गया है। इसके संबंध अनेक परम्परायें जैन आगमोंमें उपलब्ध होती हैं। दिगम्वर परम्पराके अनुसार, इस अंगके कुछ अंशोंका उद्धार षट्खंडागम और कषायप्राभूतमें उपलब्ध है। चौदह पूर्व इसीमें गर्भित हैं। इसके पांच भेद है-परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका । श्वेताम्बरोंके अनुसार परिकर्मके सात भेद है-सिद्धसेणिआ, मणुस्समेणिआ, पुट्ठसेणिआ, ओगाढ़से णिआ, उपसंपज्जणसेणिआ, विप्पजहणसे णिआ, चुआचुअसे णिआ।

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