Book Title: Syadvada Manjari
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 388
________________ ३३८ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां यशोविजयजीने योगके ऊपर अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषद. तथा योगलक्षण, पातंजलयोगलक्षणविचार, योगभेद, योगविवेक, योगावतार, मित्रा, तारादित्रय, योगमाहात्म्य आदि द्वात्रिशिकायें लिखनेके साथ हरिभद्रकी योगविशिका और पांडशकपर टीका लिखकर, पतंजलिके योगसूत्रोंपर जैन प्रक्रियाके अनुसार वृत्ति रची है। यशोविजयजीने उक्त ग्रंथों में भगवद्गीता, योगवासिष्ठ, तैत्तिरीय उपनिषद्, पातंजल योगसूत्र आदि वैदिक ग्रंथों का उपयोग क्यिा है और साथ हो जैन और पतंजलिके योगको प्रक्रियाओंको तुलना करते हुए अनेक स्थलोंपर पतंजलिको प्रक्रियाका प्रतिवाद किया है।' वौद्ध ग्रंथों में भी योगका वर्णन मिलता है। स्वयं बुद्धने बोधि प्राप्त करनेके पूर्व योगका अभ्यास किया था। पातंजल योगदर्शनकी तरह बौद्ध शास्त्रोंमें भी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, मंत्री, करुणा, मुदिता, उपेक्षा आदिको धर्मके प्रधान अङ्ग मान इनके विशद वर्णन के साथ हेय, हेयहेतु, हान और हानोपायको तरह दुःख, समुदय, निरोध और मार्ग इन चार आर्यसत्योंका उपदेश दिया है। महायान सम्प्रदायको विज्ञानवाद शाखा योगाभ्यासपर विशेष ध्यान देनेके कारण ही योगाचार नामसे कही जाती थी। योगाचार सम्प्रदायमें व्यान, पारमिता, समाधि आदि प्रक्रियाओंका विस्तृत वर्णन पाया जाता है। वौद्धतन्त्रको क्रियातन्त्रका नाम बहुत महत्त्वका है। अनुत्तरयोगतन्त्रके पंचक्रममें भी योगकी पांच दशाओंका वर्णन आता है। हीनयान सम्प्रदायमें भी योगाभ्यासको महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया १. जैन योगके विपयमें विशेष जानने के लिए देखिये पं० सुखलालजीको योगदर्शन और योगविशिकाकी भूमिका। २. हीनयानके योगसंबंधी सिद्धांतोंके लिये देखिये मिसेज राइस डैविड्सका Yogavchara's Mannual, पाली टैक्स्ट सोसायटी १९१६ ।

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