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अन्य. यो. व्य. श्लोक १६] स्याद्वादमञ्जरी साकारत्वप्रसङ्गाच्च । अर्थेन च मूर्तेनामूर्तस्य ज्ञानस्य कीदृशं सादृश्यम् । इत्यर्थविशेषग्रहणपरिणाम एव साभ्युपेया। ततः
"अर्थेन घटयत्येनां न हि मुक्त्वार्थरूपताम् ।
तस्मात् प्रमेयाधिगतेः प्रमाणं मेयरूपता" ।' इति यत्किञ्चिदेतत् ॥
अपि च, व्यस्ते समस्ते वैते ग्रहणकारणं स्याताम् । यदि व्यस्ते, तदा कपालाद्यक्षणो घटान्त्यक्षणस्य, जलचन्द्रो वा नभश्चन्द्रस्य ग्राहकः प्राप्नोति, यथासंख्यं तदुत्पत्तेः तदाकारत्वाच्च । अथ समस्ते, तर्हि घटोत्तरक्षणः पूर्वघटक्षणस्य ग्राहकः प्रसजति, तयोरुभयोरपि सद्भावात् । ज्ञानरूपत्वे सत्येते ग्रहणकारणमिति चेत् , तर्हि समानजातीयज्ञानस्य समनन्तरज्ञानग्राहकत्वं प्रसज्येत, तयोर्जन्यजनकभावसद्भावात् । तन्न योग्यतामन्तरेणान्यद् ग्रहणकारणं पश्याम इति ।
पदार्थको निराकार, और ज्ञानको पदार्थके आकारका होनेसे ज्ञानको साकार मानना होगा। परन्तु मूर्त पदार्थों के साथ अमूर्त ज्ञानकी समानता नहीं हो सकती। अतएव ज्ञानको अर्थाकारताका कार्य प्रतिनियत पदार्थोका ज्ञान ही मानना चाहिये । इसलिये
"ज्ञानको अर्थाकारताको छोड़कर पदार्थ और ज्ञानका कोई सम्बन्ध नहीं होता, अतएव ज्ञानका पदार्थोके आकार होना ही ज्ञानकी प्रमाणता है," यह आप लोगोंका कथन खण्डित हो जाता है।
तथा, आप लोगोंका जो कहना है कि ज्ञान पदार्थसे उत्पन्न होता है ( तदुत्पत्ति ), और पदार्थों के आकार होकर पदार्थका ज्ञान करता है ( तदाकार), सो यह ज्ञानकी तदुत्पत्ति और तदाकारता पदार्थों के ज्ञानमें अलग-अलग रूपसे कारण हैं, अथवा मिलकर ? यदि कहो कि कहीं तदुत्पत्ति और कहीं तदाकारता पदार्थोके ज्ञानमें अलग-अलग कारण हैं, तो कपालके प्रथम क्षणको घटके अन्तिम क्षणका ज्ञान होता है, ऐसा मानना चाहिये, क्योंकि घटके अन्तिम क्षणसे कपालका प्रथम क्षण उत्पन्न होता है (तदुत्पत्ति ); तथा चन्द्रमाके जलमें पड़नेवाले प्रतिबिम्बको आकाशके चन्द्रमाका ज्ञान होता है, ऐसा मानना चाहिये, क्योंकि जल-चन्द्र आकाश-चन्द्रके आकारको धारण करता है (तदाकार )। परन्तु घटके अन्तिम क्षणसे कपालके प्रथम क्षणके उत्पन्न होनेपर भी कपालके प्रथम क्षणको घटके अन्तिम क्षणका ज्ञान नहीं होता; तथा जलमें पड़नेवाले चन्द्रमाके प्रतिबिम्बके आकाशके चन्द्रमाके आकारका होनेपर भी जल-चन्द्रको आकाशचन्द्रका ज्ञान नहीं होता। अतएव तदुत्पत्ति और तदाकारता अलग-अलग पदार्थके ज्ञानमें कारण नहीं हैं। यदि कहो कि तदुत्पत्ति और तदाकारता दोनों मिलकर पदार्थोके ज्ञानमें कारण हैं, तो यह ठीक नहीं; क्योंकि घटका उत्तर-क्षण घटके पूर्व-क्षणसे उत्पन्न भी होता है (तदुत्पत्ति), और पूर्व-क्षणवर्ती घटाकार भी है (तदाकारता), परन्तु उत्तर-क्षण घटको पूर्व-क्षणवर्ती घटका ज्ञान नहीं होता। शंका-जो ज्ञान जिस पदार्थसे उत्पन्न हुआ है, और जिस पदार्थ के आकारको धारण करता है, वह ज्ञान उसी पदार्थको जानता है, इसलिये यह नियम नहीं है कि जो कोई वस्तु जिस किसी वस्तुसे उत्पन्न होती हो, और जिस वस्तुका आकार रखती हो, वह उस वस्तुको जाने (ज्ञानरूपत्वे सति तदुत्पत्ति तदाकारता ) । समाधानयह भी ठीक नहीं। क्योंकि पीछेसे उत्पन्न होनेवाले ज्ञान ( समनन्तर ज्ञान ) के पूर्ववर्ती सजातीय ज्ञानसे उत्पन्न होने, और उसके आकार रूप होनेके कारण पूर्ववर्ती समानजातीय ज्ञानके ग्राहक होनेका प्रसंग उपस्थित हो जायगा। अतएव प्रत्येक ज्ञानके प्रतिनियत पदार्थों को जानने में कर्मोंके आवरणकी क्षयोपशम रूप योग्यताको ही कारण मानना चाहिये।
१. प्रमाणवातिके ३-३०५ ।