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स्याद्वादमञ्जरी (परिशिष्ट)
२९१ बेड़े हुए लवणसमुद्र, लवणसमुद्रको घातकीखंड, घातकोखंडको कालोदधिसमुद्र, और कालोदधिको बेड़े हए पुष्करद्वीप है। इसी प्रकार आगे आगे एक दूसरेको बेड़े हुए दूने-दूने विस्तारवाले असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। अंतमें स्वयंभूरमण समुद्र है । जम्बूद्वीपमें भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रोंमें गंगा, सिन्धू आदि चौदह नदियां बहती हैं। मनुष्यलोकमें पन्द्रह कर्मभमि और तीस भोगभूमि है। ज्योतिष्क देव भी मध्य लोकमें ही निवास करते हैं। सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र, और तारे ये ज्योतिष्क देवों के पांच भेद है। मेरुसे ऊर्ध्वलोकके अन्त तक के क्षेत्रको ऊर्ध्वलोक कहते हैं। ऊर्ध्वलोकमें बारह स्वर्ग ( दिगम्बरों की प्रचलित मान्यताके अनुसार सोलह स्वर्ग ) होते हैं । इन स्वर्गोंके ऊपर नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश' और विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि ये पांच अनुत्तर विमान है । सर्वार्थसिद्धिके ऊपर लोकके अंतमें एक राजू चौड़ी, सात राजू लम्बी, आठ योजन मोटो ईषत्याग्भार नामक पृथिवी है। इस पृथिवीके बीचमें पैंतालीस लाख योजन चौड़ी, मध्यमें आठ योजन मोटी सिद्धशिला है। इस सिद्ध शिलाके ऊपर तनुवातवलयमें मुक्त जीव निवास करते हैं।
ब्राह्मण पुराणोंमें भूलोक, अन्तरीक्षलोक और स्वर्गलोक ये तीन मुख्य लोक माने गये हैं। इनमें स्वर्गलोकके महर्लोक, जनलोक, तपोलोक और सत्यलोक ये चार भेद मिलानेसे सात लोक होते हैं। अवीचि नामके नरकसे लगाकर मेरुके पृष्ठभाग तक भूलोक कहा जाता है । अवीचि नरकके ऊपर महाकाल, अम्बरीष, रौरव, महारौरव, कालसूत्र, अंघतामिस्र ये छह नरक हैं। इन नरकोंके ऊपर महातल, रसातल, अतल, सुतल, वितल, तलातल, और पाताल ये सात पाताल है। इस आठवों भूमिपर जम्बू, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, क्रौञ्च, शाक और पुष्कर ये सात द्वीप है । ये सात द्वीप लवण, सुरा, सपि, दधि, दुग्ध, और स्वच्छ जल नामक सात समुंद्रोंसे परिवेष्टित हैं। मेरुके पृष्ठसे लेकर ध्रुव तक ग्रह, नक्षत्र और तारोंसे युक्त अन्तरीक्षलोक है। इसके ऊपर पांच स्वर्गलोक हैं। पहला माहेन्द्र स्वर्ग है । इस स्वर्ग में त्रिदश, अग्निष्वात्त, याम्य, तुषित, अपरिनिर्मित, वशवर्ती ये छह प्रकारके देव रहते हैं, जो औपपातिक देहको धारण करते हैं। इसके ऊपर महर्लोक नामके दूसरे स्वर्गमें पांच प्रकारके देव रहते हैं, जो ध्यान मात्रसे तृप्त हो जाते हैं और जिनकी हजार कल्पकी आयु होती है। तीसरा स्वर्ग ब्राह्म स्वर्ग कहा जाता है । इस स्वर्गके जनलोक, तपोलोक और सत्यलोक तीन विभाग हैं । जनलोकमें चार प्रकारके, तपोलोकमें तीन प्रकारके, और सत्यलोकमें चार प्रकारके देव रहते है।"
बौद्धोंके शास्त्रोंमें नरकलोक, प्रेतलोक, तिर्यकलोक, मानुषलोक, असुरलोक और देवलोक ये छह लोक माने गये हैं। ये लोक कामधातु, रूपधातु और अरूपधातु इन तीन विभागोंमें विभक्त हैं। सबसे नीचे नरकलोक है। संजीव, कालसूत्र, संघात, रौरव, महारौरव, तपन, प्रतापन और अवीचि ये आठ मुख्य नरक हैं। इन नरकोंकी लंबाई, चौड़ाई और उँचाई दस हजार योजन है। अवीचि नामका नरक सबसे भयंकर है। इस नरकमें अन्तकल्पको आयु होती है। नरकोंमें गाढ़ अन्धकार रहता है, और वहांके जीवोंको नाना प्रकारके दारुण दुख सहने पड़ते हैं। मानुषलोकमें जम्बू, पूर्वविदेह, अवरगोदानीय और उत्तरकुरु ये चार महाद्वीप है । ये महाद्वीप मेरु, युगन्धर आदि आठ पर्वतोंको परिक्षेपण करते हैं, और इन पर्वतोंके बीचमें सात
१. तत्त्वार्थभाष्य आदि ग्रंथोंमें अनुदिशोंका उल्लेख नहीं। २. नरकोंके विस्तृत वर्णनके लिए देखिये मार्कण्डेयपु. १२-३-३९ । मार्कण्डेयपुराणमें सात नरकोंके नाम
निम्न प्रकारसे हैं-रौरव, महारोरव, तम, निकृन्तन, अप्रतिष्ठ, असिपत्रवन और तप्तकुंभ । ३. पातालोंके वर्णनके लिये देखिये पद्मपु. पातालखण्ड १, २, ३, विष्णुपुराण अ. २, ५ । ४. द्वीप-समुद्रोंके विशेष वर्णनके लिये देखिये भागवत ५-६, १७, १८ तथा पद्मपु. भूमिखण्ड, भूगोलवर्णन
अ. १२८। ५. स्वर्गके वर्णनके लिये देखिये नृसिंहपु. अ. ३०; पद्मपु. स्वर्गखण्ड । कौषीतकी उपनिषदें बताया गया है
कि जीव अग्निलोक, वायुलोक, वरुणलोक आदित्यलोक, इन्द्रलोक, प्रजापतिलोकमें से होकर ब्रह्मलोकमें जाता है। ब्रह्मलोकके वर्णन के लिये देखिये १-२ से आगे।