Book Title: Syadvada Manjari
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 311
________________ अन्य. यो. व्य. श्लोक २९] स्याद्वादमञ्जरी २६१ अधुना परदर्शनानां परस्परविरुद्धार्थ समर्थकतया सत्सरित्वं प्रकाशयन् सर्वज्ञोपज्ञसिद्धान्तस्यान्योन्यानुगतसर्वनयमयतया मात्सर्याभावमाविर्भावयति गोल होते हैं; प्रत्येक गोलमें असंख्यात निगोद रहते हैं, और एक निगोदमें अनन्त जीव रहते हैं । जितने जीव व्यवहाररागिने निकल कर मोक्ष जाते हैं, उतने ही वनस्पतिराशिसे व्यवहारराशिमें आ जाते हैं, अतएव यह संसार जीवोंने कभी खाली नहीं हो सकता । मोक्ष जाते रहते हुए भी संसार खाली नहीं होगा, इसका दसरी प्रकार से समर्थन करते हुए जैन विद्वानोंने जोवोंको भव्य और अभव्य' दो विभागों में विभक्त किया है । जो मोक्षगामी जीव हैं, वे भव्य हैं, तथा जो अनंत काल बीतनेपर भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते, वे अभव्य है । अतएव भव्य जीवोंके मोक्ष जाते रहते हुए भी यह संसार जीवोंसे शून्य नहीं हो सकता । सिद्धसेन दिवाकरने आगमके हेतुवाद और अहेतुवाद दो विभाग करते हुए भव्य - अभव्यके विभागको अहेतुवादमें गर्भित किया है। (२) पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रसके भेदसे जोव छह प्रकार के होते हैं । महदास आदि वैदिक ऋपियोंने, महाभारत और मनुस्मृतिकार तथा गोशाल प्रभृतिने भी पृथिवी, जल आदिमे जीव स्वीकार किया है। आधुनिक साइंस के अनुसार वनस्पतिके सचेतन होनेमें कोई विवाद नहीं है । भारतीय वैज्ञानिक सर जे० सी० बोसने टिन, शीशा, प्लैटिनम आदि धातुओंमें भी प्रतिक्रिया ( Response ) सिद्ध की है । ७ परस्पर विरुद्ध अर्थको प्रतिपादन करनेवाले अन्य दर्शन एक दूसरेसे ईर्ष्या करते हैं, अतएव सम्पूर्ण नय स्वरूप होनेसे भगवानका सिद्धान्त हो मात्सर्य रहित हो सकता है १. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रपरिणामेन भविष्यतीति भव्यः । तद्विपरीतोऽभव्यः । तत्त्वार्थराजवार्तिक २७, ७, ८, देखिये भव्या भव्य विभाग — याख्याप्रज्ञप्ति । बौद्धोंके महायान सम्प्रदाय में भव्याभव्यका विभाग नहीं माना गया है । २. योऽनंतेनापि कालेन न सेत्स्यति असौ अभव्यः । त० राजवार्तिक २-७-९ । ३. सन्मतितर्क ३-४३ | ४. देखिये ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय आरण्यक । ५. महीदास, गोशाल और महावीरकी प्राणिशास्त्र संबंधी मिलती जुलती मान्यताओं के लिये देखिये प्रो० रुआको Pre-Buddhist Indian Philosophy, नामक पुस्तकका २१ वां अध्याय । ६. मिलाइये — तत्र पृथिवी कायिकजातिनामानेकविधम् । तद्यथा । शुद्धपृथिवीशर्कराबालु कोपल शिलालवणायस्त्रपुताम्रसीसकरूप्य सुवर्णवज्रहरताल हिङ्गुल कमनः शिलासस्यकांचनप्रवालकाभ्रपटलाभ्रवालिकाजा - तिनामादि । तत्त्वार्थाधिगम भाष्य पृ० १५८ । . It Will thus be seen that as in the case of animal tissues and of plants, so also in metals, the electrical responses are exalted by the action of stimulants, lowered by depressants, and completely abolished by certain other reagents. देखिये जे० सी० बोसकी 'Response in the Living and Non-living' पृ० १४१ तथा पृ० ८०-१९१ ।

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