Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
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हाइफन / सामासिक चिह्न के साथ रखना उचित समझा, क्योंकि जहाँ कृति में "तो फिर" का इस्तेमाल हुआ है, वहाँ न "तो" का अर्थ रहता है और न "फिर" का, अतः दोनों मिलकर एकार्थ में सामासिक रूप में रूढ होकर प्रयुक्त होते दिखते हैं, इसप्रकार हिन्दी व्याकरण में एक नया सिद्धान्त भी विचारने का अवसर मिला कि सामासिकता केवल दो संज्ञा पदों के बीच में ही नहीं होती, बल्कि वह योजक - अव्ययों आदि अन्य पदों के बीच में भी होती है । .. ..ऐसे ही एक प्रयोग मिलता है कि "और ध्यान दो' अब यहाँ योजक दिखने वाले "और" का प्रयोग योजक के रूप में नहीं है, बल्कि उसका प्रयोग है " अतिरिक्त" या "थोड़ा और" अर्थ वाले सर्वनाम के रूप में है, इसलिए सिद्धांत यह उभरा कि योजक दिखने वाला सदैव योजक नहीं होता, वह कई बार सर्वनाम भी होता है । एक प्रयोग है कि ".... आँच आने वाली है"; अब इस प्रयोग को ध्यान से देखें, तो 'है' क्रिया वर्तमान-कालिक है, पर यह साफ दिखता है कि वाक्यार्थ का यथार्थ वर्तमान में नहीं घट सकता, वह तो भविष्य में घटता-सा दिखता है, इससे स्पष्ट है कि ये सब प्रयोग अब-तक नियम- बद्ध व्याकरण की सीमा में नहीं आते, क्योंकि ध्यान से देखने पर यह साफ दिखता है कि यह न वैसा वर्तमान है और न वैसा भविष्य, जो कि उपलब्ध नियमों में पहले से व्याख्यात हैं, बल्कि मुझे तो यह प्रयोग काल की एक नई कोटि आसन्न -भविष्यय-मूलक वर्तमान वाला दिखता है। एक वाक्य है- 'नवीन कर्मास्रव और कर लेता है - इस वाक्य में क्रिया - प्रयोग है " और कर लेना" - इस प्रयोग को जब ध्यान से देखते हैं, तो यह प्रयोग अनेक पदीय आत्मनेपदी संयुक्त क्रिया के रूप में दिखता है, जिसका अर्थ है कि 'न चाहते हुए भी अतिरिक्त रूप से कर लेना; इस प्रयोग के तीन घटक हैं- पहला घटक है 'और', दूसरा घटक है 'कर' और तीसरा है 'लेना', बाद के दोनों घटक क्रिया-मूलक 'कर' और 'ले' धातुओं से बने हैं, जबकि पहला घटक 'और' दिखने में अव्यय व योजक है, परन्तु वह वस्तुतः सार्वनामिक अव्यय है; जिसका अर्थ ‘अतिरिक्त रूप से है, इसप्रकार इस क्रिया - प्रयोग के क्रमशः सर्वनाम एवं धातु-मूलक घटक हैं और ये तीनों घटक मिलकर एक अर्थ कह रहे हैं, इसलिए यह क्रिया सामासिक-अर्थ वाली संयुक्त क्रिया है। इसे इस रूप में मानने के पीछे तर्क यह है कि इसके तीनों घटक समान स्तरीय नहीं हैं, अतः इसे केवल या शुद्धतः सामासिक-क्रिया नहीं माना जा सकता; इसलिए यह संयुक्त क्रिया है।
'जपते-जपते समाधि लेना श्रेष्ठ है, - इस प्रयोग को आप ध्यान से देखें, तो अब-तक के हिन्दी वर्तनी - प्रयोगों में 'समाधि लेना' के बीच में सामासिक - चिह्न / हाइफन