Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
View full book text
________________
16/
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
श्लो. : 1
द्रव्यों की अपेक्षा से मुक्त, उपमा-रहित, अपरिमाण (अपार) नित्य और सर्व कला में उत्तम तथा अनन्त-सारता से युक्त, ऐसा जो परम सुख है, वह इस मोक्ष से उन सिद्धों को प्रकट हुआ है।
वे सिद्ध भगवान् ज्ञानावरण-कर्म का क्षय होने से केवलज्ञान से सुशोभित हैं, दर्शनावरण-कर्म का क्षय होने से केवल-दर्शन-सहित होते हैं, वेदनीय-कर्म का क्षय होने से अव्याबाधत्व-गुण को प्राप्त होते हैं, मोहनीय-कर्म का विनाश होने से अविनाशी सम्यक्त्व को प्राप्त होते हैं, आयु-कर्म का विच्छेद होने से अवगाहना को प्राप्त होते हैं, नाम-कर्म का उच्छेद होने से सूक्ष्मत्व-गुण को प्राप्त होते हें, गोत्र-कर्म का विनाश होने से सदा अ-गुरु-लघु-गुण से रहित होते हैं और अन्तराय का नाश होने से अनन्त-वीर्य को प्राप्त होते हैं।
आत्मा युगपद् मुक्तामुक्त है। आठ कर्मों से मुक्त और आठ गुणों से युक्त है, यहाँ ऐसा भी नहीं समझना कि कर्म-नाश पूर्व में होता होगा, गुण बाद में आते हों; दोनों कार्य एक-साथ ही होते हैं, कर्म-नाश व गुण-प्रकट – सूर्य का उदय व अन्धकार का अभाव, प्रकाश-प्रताप-वत् समझना। अतः यहाँ अनेकान्त-दृष्टि से समझना कि आत्मा मुक्त है, आत्मा अमुक्त है, कथंचित् उभयात्मक है। सभी धर्मों को एक-साथ कहा नहीं जा सकता, इसलिए कथंचित् अवक्तव्य है, -इसप्रकार सप्तभंगात्मक होगा, -ऐसा समझना चाहिए।
अक्षयं परमात्मानं- यह विशेषण अपूर्व सिद्धान्त से संबंधित है, जिसके भूत में क्षय नहीं हुआ, वर्तमान में क्षय नहीं हो रहा, भविष्य में क्षय नहीं होगा, त्रैकालिक ध्रुव है, वे अक्षय परमात्मा हैं।
ज्ञानियो! ध्यान रखो- भक्ति की भी भाषा क्यों न हो?.. पर सिद्धान्त से युक्त होना चाहिए, जहाँ जैन सिद्धान्त के घातक शब्द का प्रयोग हो, वहाँ भक्ति कहाँ रही?... अक्षय विशेषण पर चर्चा करना अनिवार्य है। विद्वानों व त्यागियों को विशेष ध्यान देने योग्य है, चाहे स्वयं की भक्ति का प्रसंग हो अथवा अन्य की पूजा-सत्कार का, लेकिन सिद्धान्त का खण्डन नहीं होना चाहिए। जहाँ भी सिद्धान्त का घात होता दिखे, वहाँ मौन होने पर भी बोलना चाहिए, -ऐसी आगम-आज्ञा है।
जैन-दर्शन में अप्रतिष्ठित प्रतिमा पूज्य नहीं है, फिर फोटो-तस्वीरें कैसे पूज्य हैं? तीर्थंकर भगवन्तों के साथ वेदी पर आज अपूज्यों की तस्वीरें रखी जाने लगी हैं तथा भिन्न स्थानों पर भी रखकर आचार्य, मुनियों की तस्वीरों की पूजा प्रारंभ है; इसे