Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
श्लो . : 17
के पालन में रुचि न रखना आदि रति-वेदनीय के आस्रव हैं। असत्य बोलने की आदत, अतिशय दूसरे के छिद्र ढूँढ़ना, बढ़ा हुआ राग आदि स्त्री-वेदनीय के आस्रव हैं। क्रोध का अल्प होना, ईर्ष्या नहीं करना, अपनी स्त्री में सन्तोष करना आदि पुरुष-वेदनीय के आस्रव हैं। दूसरों में अरति उत्पन्न हो और रति का विनाश हो, ऐसी प्रवृत्ति करना और पापी लोगों की संगति करना आदि अरति वेदनीय के आस्रव है। स्वयं शोकातुर होना, दूसरे के शोक को बढ़ाना तथा ऐसे मनुष्यों का अभिनन्दन करना शोक-वेदनीय के आस्रव है। भय रूप अपना परिणाम और दूसरे को भय पैदा करना भय-वेदनीय के आस्रव हैं। सुखकर-क्रिया और सुखकर-आचार से घृणा करना और अपवाद करने में रुचि रखना आदि जुगुप्सा-वेदनीय के आस्रव हैं। प्रचुर मात्रा में कषाय करना, गुप्त इन्द्रियों का विनाश करना और पर-स्त्री से बलात्कार करना आदि नपुंसक-वेदनीय के आस्रव हैं। इन कारणों को अच्छी तरह ज्ञात कर उनकी प्रवृत्ति का त्याग करो, यदि चारित्र धारण करने के विचार हैं तो; अन्यथा संयम के लिए तड़फते ही रहोगे; पर, चारित्र स्वीकार नहीं कर सकोगे, सर्वप्रथम तो भोगों का राग संयमाचरण की भावना ही नहीं होने देगा, इतना जीव उन्मत्त रहता है कि उसे पूर्वापर विवेक ही जाग्रत नहीं होता कि मुझे विषयों से निज-आत्मा की रक्षा करना है, अपितु तीव्र राग के वश हुआ दुर्बुद्धि-पूर्वक विषयों का चिन्तवन कर मानसिकभोग भोगकर तीव्र चारित्र-मोहनीय कर्म का आस्रव करता है, मूढ-बुद्धि पुरुष भूतार्थ-पुरुष को भूलकर पर-मुख हुआ विषयों की ज्वाला में तत्त्व-बोध-शून्य हो जाता है, तत्त्व-बोध ही जिसे नहीं है, वह क्या चारित्र की बात करेगा, क्यों चारित्र धारण करेगा?...बोध-विहीन के लिए संयम व्यर्थ ही लगेगा, जिसे बीज-अंकुर का ही बोध नहीं है, वह क्या बीज की कीमत समझेगा ?.... जिसे तत्त्व-बोध नहीं, वह तत्त्व को क्या समझेगा?...... भूतार्थता का ज्ञान तभी संभव है, जब कषाय-भावों में मन्दता होगी, बिना कषाय की मंदता के परिणामों की भद्रता के बिना आत्मा तत्त्व में अवगाहन नहीं कर सकती, तत्त्व के अर्थ को सर्वप्रथम समझना आवश्यक है, तत्त्व शब्द के शब्दकोश में तीन अर्थ हैं