Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
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परिशिष्ट-2
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन ।
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वैशेषिक दर्शन- वैशेषिक लोग भेद-वादी ___ ध्यान के चार सोपान या भेद हैंहैं; ये द्रव्य, गुण, पर्याय तथा वस्तु के पृथक्त्ववितर्कवीचार, एकत्व-वितर्क-अवीचार, सामान्य व विशेष अंशों की पृथक्-पृथक सूक्ष्म-क्रिया-प्रतिपाती और व्यपरतसत्ता स्वीकार करके समवाय-सम्बन्ध से क्रियानिवृत्ति। उनकी एकता स्थापित करते हैं। ईश्वर को
-जै.द. पा. को., पृ. 233 सृष्टि व प्रलय का कर्ता मानते हैं। शिव के शुक्ल-लेश्या- पक्षपात न करना, आगामी उपासक हैं। प्रत्यक्ष व अनुमान दो प्रमाण काल में भोग की आकांक्षा न करना, समस्त स्वीकार करते हैं। इनके साधु वैरागी होते हैं। प्राणियों में समता-भाव रखना तथा राग-द्वेष
-जै. सि. को., खं. 3, पृ. 615 . व मोह नहीं करना, ये शुक्ल-लेश्या के व्यंजन-पर्याय- जो स्थूल है, शब्द के द्वारा लक्षण हैं। कही जा सकती है और चिर-स्थायी है,
-जै.द.पा.को., पृ. 234 उसे व्यंजन-पर्याय कहते हैं। जैसे- जीव की सिद्ध-पर्याय या मनुष्य आदि पर्याय । -जै.द.पा.को., पृ. 226
श्रमण- श्रमण तथा अनगार सम्यक व व्यय- द्रव्य की पूर्व-पर्याय का विनाश-होना
मिथ्या दोनों प्रकार के होते हैं। सम्यक्-श्रमण व्यय कहलाता है।
विरागी और मिथ्या-श्रमण सरागी होते हैं। -जै.द.पा.को., पृ. 227
उनकी ही यति, मुनि, ऋषि और अनगार व्यवहार- नय-संग्रह-नय के द्वारा ग्रहण
कहते हैं। किये गये पदार्थों का विधि-पूर्वक भेद करना
-जै. सि. को., खं. 4, पृ. 46 व्यवहार-नय है। जैसे-संग्रह-नय के विषय-भूत द्रव्य में जीव व अजीव-द्रव्य,
अ- मति-ज्ञान से जाने हुए पदार्थ के -ऐसे दो भेद करना। उसमें भी देव, मनुष्य
अवलम्बन से तत्सम्बन्धी दूसरे पदार्थ आदि जीव के भेदों का आश्रय लेकर
का जो ज्ञान होता है, उसे श्रुतज्ञान व्यवहार-करना। यह दो प्रकार का है
कहते हैं। सद्-भूत व्यवहार-नय और असद्भूत
जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहे गये व्यवहार-नय।
वचनों के अनुरूप गणधर आदि के -जै.द.पा.को., पृ. 228
द्वारा जो ग्रन्थ रचना की जाती है। उसे श्रुत या श्रुत-ज्ञान कहते हैं।
श्रुत-ज्ञान दो प्रकार का है-अंग शुक्ल-ध्यान- रागादि विकल्प नष्ट हो जाने
प्रविष्ट और अंग-बाह्य। पर आत्मा में जो निर्विकल्प-ध्यान की प्राप्ति
-जै.द. पा.को. पृ. 235 होती है, उसे शुक्ल-ध्यान कहते हैं। शुक्ल
श्रुत-ज्ञान
श