Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha

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Page 267
________________ श्लो. : 24 स्वरूप-संबोधन-परिशीलन 1207 समझना चाहिए, बिना संवर के निर्जरा मोक्ष-मार्ग में प्रयोजनभूत नहीं है, -ऐसा अर्हत्-जिन का उपदेश है। अहो प्रज्ञ! निराकुलता ही शिव-धाम का सोपान है, आत्मा का भूतार्थ-सुख आकुलता से रहित है, परम-निराकुल समरसी-दशा निर्वाण-अवस्था है, मोक्ष है, इसलिए शान्त-चित्त से मोक्ष-मार्ग की साधना करना चाहिए। परम-समरसी-भाव का आनन्द विषयों में नहीं है, वह तो शुद्ध निराकुल रत्नत्रय-धर्म की आराधना में है। अहो मुमुक्षुओ! व्यग्रता से रहित होकर स्व-संवेदन-गम्य अपने स्वरूप में मात्र स्थिर हो जाओ।.... पर से पूर्ण-निरपेक्ष एक ज्ञायक-भाव है, जहाँ अन्य ज्ञेयों से अत्यन्त भिन्न होकर निज ज्ञेय में ही ज्ञाता स्थिर हो जाता है। नय, निक्षेप, अनुयोग, गुणस्थान, मार्गणा-स्थान, जीव-समास से रहित, ज्ञाता-भाव में लवलीन चैतन्य-धर्म सदा विद्यमान है, उसी की अनुभूति स्व-संवेदन-भाव है, स्व-संवेदन में स्थिर योगी पर-भावों से भिन्न भाव के विकल्प से भी अपने-आपको भिन्न रखता है, मैं 'मैं' हूँ, पर 'पर' है, -ऐसा विकल्प भी जहाँ समाप्त हो जाता है, वहीं सत्यार्थ स्व-संवेदन-भाव है। परम योगीश्वर, वीतराग, निर्ग्रन्थ, तपोधन, एकमात्र स्व-संवेदन की भावना में ही जाग्रत रहते हैं, पर्याय के राग में स्वात्मा की रक्षा करते है, पर्याय के रागों में पर का ही संवेदन होता रहा, स्वरूप-सम्बोधन नहीं हो सका। अहो! भिन्नत्व-भाव का चिन्तवन भी आत्मा का स्वभाव नहीं है, भेद-विज्ञान का चिन्तवन भी जहाँ समाप्त हो जाता है, वहाँ निर्विकल्प, सहज-स्वरूप की लीनता है, वहाँ न तत्त्व-विकल्प है, न ज्ञान-विकल्प है, न ध्यान-विकल्प, न ध्याता का विकल्प है, धर्म का विकल्प भी जहाँ नहीं है, वहीं परम-सत्यार्थ-धर्म है, जो-कि पर्याय की पूजा में नहीं है, परमात्मा की पूजा में है, पूज्य-पूजक के भाव का भी जहाँ अभाव है, वह अवस्था परम-पूज्य क्षीण-मोही महामुनीश्वरों की है और कुछ नहीं, मात्र उस अवस्था से युक्त योगी के भावों का मैं पुजारी हूँ, शुभ-योगी के परिणाम ही संवर-स्थान हैं, वे परिणाम ही निर्जरा-स्थान हैं, वे ही मोक्ष-स्थान हैं, शेष संसार-भूत ही समझो। अहो ज्ञानियो! लोक में मंगलोत्तम-शरण-भूत वे ही परिणाम हैं, अन्य पर्याय हैं, वे परिणाम नहीं हैं। पर्याय की आराधना सारा जगत् करता है, परंतु परमात्म-भाव की आराधना तत्त्व-ज्ञ योगीश्वर ही करते हैं, उन योगियों के मार्ग पर चलने का पुरुषार्थ करो।।२४ ।।" ***

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