Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha

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Page 308
________________ 2481 स्वरूप-संबोधन-परिशीलन परिशिष्ट-2 मुक्त भोक्तृत्व-भाव- शुभ-अशुभ कर्मों के निर्वर्तन का नाम कर्तृत्व है, इस कर्तृत्व के कारण ही उक्त शुभ-अशुभ कर्मों के फल का जो भोगना है, उसे भोक्तृत्व कहा जाता है। -जै. लक्ष., भा. 3, पृ. 870 म ब मति-ज्ञानअ- इन्द्रिय व मन के निमित्त से जो ज्ञान होता है, उसे मति-ज्ञान कहते हैं। वर्तमान-काल को विषय करने वाला जो ज्ञान अविनष्ट पदार्थ को ग्रहण करता है, वह मति-ज्ञान कहलाता है। -जै. लक्ष. भा. 3, पृ. 874 मनःपर्यय-ज्ञानअ- जो जीवों के द्वारा मन से चिन्तित अर्थ को प्रगट किया करता है, उसे मनःपर्यव, मनःपर्यय अथवा मनः पर्य य-ज्ञान कहते हैं, उसका सम्बन्ध मनुष्य-क्षेत्र से है। -जै. लक्ष., भा. 3, पृ. 884 मिथ्यात्व-तत्त्वार्थों के अश्रद्धान को मिथ्यात्व कहते हैं, वह संशयित, अभिगृहीत और अनभिगृहीत के भेद से तीन प्रकार का है। -जै.लक्ष., भा. 3, पृ. 918 मिथ्या-दृष्टि- जिनकी दृष्टि मिथ्यात्व व मोहनीय-कर्म के उदय से जिन-प्रणीत पदार्थ-समूह के श्रद्धान से रहित होती है तथा जिनको जिनवाणी नहीं रुचती है, वे मिथ्यादृष्टि कहलाते हैं। -जै.लक्ष., भा. 3, पृ. 920 अ- जो जीव द्रव्य-बन्ध और भाव-बन्ध दोनों से रहित हो चुके हैं, वे मुक्त कहलाते हैं। जो समस्त ज्ञानावरणादि कर्मों से छुटकारा पा गये हैं, उन्हें मुक्त कहते हैं। -जै. लक्ष., भा. 3, पृ. 926 मुमुक्षु- जो पुण्य और पाप इन दोनों ही प्रकार के कर्मों से रहित हो चुका है, उसे मुमुक्षु (मोक्षाभिलाषी) कहते हैं। -जै.लक्ष., भा. 3, पृ. 928 मूर्तत्वअ- जीव जिन विषयों को इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण कर सकते हैं, वे मूर्त कहे जाते हैं। ब- स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण के सद्भाव-रूप स्वभाव वाले पदार्थ को मूर्त कहते हैं। स- रूपादि से संयुक्त-होना -यही मूर्त पदार्थ का मूर्तत्व है। ___ -जै. लक्ष., भा. 3, 1979, पृ. 930 मूल-गुणमूलोत्तर-गुणअ- अनशनादि तप उत्तर-गुण हैं, उनके कारण होने से व्रतों में मूल-गुण का व्यपदेश होता है। ब- श्रावक के अष्ट मूल-गुण। स- साधु के 28 मूल-गुण। (मूल-गुणों से अतिरिक्त गुणों को मूलोत्तर-गुण कहते हैं) -जै. सि. को., भा. 3, पृ. 330

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