Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
View full book text
________________
श्लो . : 23
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
1193
श्लोक-23
उत्थानिका- शिष्य गुरुदेव के चरणों में अपनी भावना रखता है- हे भगवन्! माध्यर्थ्य-भाव स्वात्माधीन है कि पराधीन?.... और मुझे इसकी प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए?...... समाधान- आचार्य-प्रवर समझाते हैं
सापि च स्वात्मनिष्ठत्वात्सुलभा यदि चिन्त्यते।
आत्माधीने सुखे' तात, यत्नं किन्न करिष्यसि ।। अन्वयार्थ-(सा अपि) वह इच्छा भी, (यदि) यदि, (स्वात्मनिष्ठत्वात्) अपने आत्मा में ही केन्द्रित होने के कारण, (सुलभा) सुलभ, (चिन्त्यते) समझते हो, तो, (तात!) हे तात्! (आत्माधीने) स्वाधीन होने पर प्राप्त होने वाले, (सुखे) सुख के पाने में, (यत्न) प्रयत्न, (किं न करिष्यसि) तुम क्यों न करोगे?.... यानी अवश्य करोगे।।23 ||
परिशीलन- आचार्य-भगवन् मुमुक्षुओं को वात्सल्य-पूर्ण भाव से सम्बोधित कर रहे हैं कि वाणी की माधुर्यता लोक में श्रेष्ठ है, जो आनन्द अमृत-पान में नहीं है, वह आनन्द वाणी के माधुर्य-गुण में है, काले विष-धर को भी बीन के स्वर की मधुरता वश में कर लेती है। व्यक्ति कितना ही कठोर व नास्तिक क्यों न हो, पर वह भी वश में हो जाता है, समझाने वाले की वाणी में मधुरता का मंत्र होना चाहिए, वचनों की मधुरता के अभाव में मित्र भी शत्र-भाव को प्राप्त हो जाते हैं, वचनों की मिठाई में शत्र भी मित्र हो जाते हैं, जीवन में वचनों का प्रयोग कैसे करना है, समय को देखकर वह भी एक विषय है। ज्ञानियो! विद्या की प्राप्ति पुण्य के अभाव में नहीं होती, पुण्यवान् को ही विद्याएँ फलित होती हैं, जिनके प्रसाद से व्यक्ति सारे विश्व में जाना जाता है, ज्ञान सर्वत्र यश-कारी होता है। मनीषियो! क्षीर्ण-पुण्यात्मा-व्यक्ति के साथ विद्या की उपलब्धि नहीं देखी जाती। यहाँ पर यह बात समझ लेना चाहिए कि पुण्य-हीन को वाणी की मधुरता नहीं मिलती, सुस्वर नामक कर्म पुण्य-प्रकृति है, वह तद्-जन्य पुण्य के क्षयोपशम से प्राप्त होती है, सुस्वर नाम कर्म का उदय होने पर सभी को वचन अच्छे लगते हैं, परंतु सुस्वर नाम-कर्म का उदय नहीं है, तो कितना ही अच्छा
1. कुछ विद्वान् 'सुखे' के स्थान पर 'फले' पाठ मानते हैं, पर अतीन्द्रिय-सुख की दृष्टि से सुखे वाला पाठ
सीधा तत्त्व-स्पर्शी व मर्म-स्पर्शी लगता है।