Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
श्लो. : 12
विशेषण का एक निश्चित प्रयोजन होता है, अब यहाँ प्रत्येक विशेषण की सार्थकता के प्रयोजन को बतलाते हैं। प्रमाण के लक्षण में ज्ञान-विशेषण के द्वारा उन लोगों के मत का निराकरण किया है, जो अज्ञान-रूप सन्निकर्ष आदि को प्रमाण मानते हैं। व्यवसायात्मक विशेषण के द्वारा बौद्धों का निराकरण किया गया है, जो प्रत्यक्ष प्रमाण को अव्यवसायात्मक मानते हैं। 'अर्थ' विशेषण के द्वारा बाह्य पदार्थों का अपलाप (अभाव) करने वाले विज्ञानाद्वैतवादी, ब्रह्माद्वैतवादी और शून्याद्वैतवादियों का निराकरण किया गया है। अर्थ पद को अपूर्व के साथ मिला देने पर अपूर्वार्थ पद बनता है। इस अपूर्वार्थ विशेषण के द्वारा धारावाहिक ज्ञान को प्रमाण मानने वालों का निराकरण किया गया है और 'स्व' विशेषण के द्वारा परोक्ष-ज्ञान-वादी मीमांसकों, ज्ञानान्तरप्रत्यक्ष-ज्ञान-वादी यौगों और अस्वसंवेदनवादी सांख्यों के मतों का निराकरण किया गया है। अतः यहाँ पर यह समझना चाहिए कि जो प्रमाणभूत ज्ञान है, वह स्व एवं अर्थ दोनों को जानने वाला है, जो परार्थ को ग्रहण करता है, वह स्वार्थग्राही भी होता है, प्रत्येक जीव स्व-संवेदन ज्ञान से युक्त है; अन्तर इतना है कि व्यावहारिक जीवन में जैसा घर का स्व-संवेदन सामान्य जन कर रहे हैं, वैसा स्व-शुद्धात्मा का प्रत्यक्षीभूत स्व-संवेदन सामान्य जन नहीं करते। निज शुद्धात्मा का जो संवेदन है, वह तो भेदाभेद रत्नत्रय-धर्म की आराधना करने वाले परम वीतरागी निर्ग्रन्थ दिगम्बर तपोध न ही करते हैं, प्रमाण का फल प्रमिति प्रमाण से कथञ्चित् भिन्न है, कथञ्चित् अभिन्न है। अज्ञान की निवृत्ति, सद्ज्ञान की प्राप्ति, प्रमाण का प्रत्यक्ष अभिन्न फल है तथा परम्परा-फल हान, उपादान उपेक्षा यानी त्याग, ग्रहण, माध्यस्थ्य भाव ये भिन्न प्रमिति स्वीकार की गई है अथवा अज्ञान की निवृत्ति साक्षात् अभिन्न फल है, परम्परा से मोक्ष-सुख अभिन्न फल है। यश की प्राप्ति, शिष्यों की उपलब्धि आदि भिन्न ज्ञान का फल है।
महान् तार्किक आचार्य-प्रवर माणिक्यनन्दी स्वामी ने उक्त विषय का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है, यथाअज्ञाननिवृत्तिहानोपादानोपेक्षाश्च फलम्।।
-परीक्षामुखसूत्र, 1/5 अज्ञान निवृत्ति, हान, उपादान और उपेक्षा, ये प्रमाण के फल हैं। जिस पदार्थ के विषय में प्रमाण प्रवृत्त होता है, उस विषयक अज्ञान की निवृत्ति प्रमाण के द्वारा हो जाती है, जैसे- किसी व्यक्ति ने प्रमाण के द्वारा घट को जाना, तो इसके पहले