Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
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श्लो. : 11
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
1107
स्यात्सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रत्रितयात्मकः । मुक्तिहेतुर्जिनोपज्ञं निर्जरा-संवर-क्रियः ।।
-तत्त्वानुशासन, श्लो. 24 सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता मोक्ष का कारण है। निर्जरा एवं संवर की क्रियाएँ भी जिनेन्द्र भगवान् द्वारा मोक्ष-हेतु कही गई हैं। आचार्य उमास्वामी महाराज ने प्रथम सूत्र ही कहा हैसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।।
- तत्त्वार्थसूत्र 1/1 ज्ञानियो! ध्यान दो- सम्यग्दर्शन, ज्ञान ये दोनों तो युगपद् होते हैं, परन्तु चारित्र भजनीय है अर्थात् हो सकता है और नहीं भी, परन्तु भूतार्थ मोक्ष-मार्ग तो तीनों के होने पर ही आचार्यों ने स्वीकारा है, बिना रत्नत्रय के मोक्षमार्ग नहीं। देशव्रती श्रावक तो एक-देश मोक्षमार्गी है, क्योंकि उसके देश-संयम है, परन्तु अविरत सम्यग्दृष्टि उपचार से ही मोक्षमार्गी है, -ऐसा समझना चाहिए। यथा-शक्ति शब्द का प्रयोग आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने किया है, -इस दृष्टि से जितना बन सके, उतना संयमित चतुर्थ गुणस्थानवर्ती को भी रहना चाहिए। सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान तो उनके पास होता ही है, चारित्र का अभाव है, व न वहाँ देश-चारित्र है, न सकल-चारित्र, इसलिए असंयम-मार्गणा में ही गणना होती है। परन्तु भगवान् कुन्दकुन्द ने षट् अनायतन, तीन मूढ़तादि पच्चीस-दोष-रहित सम्यग्दर्शन का जैन पालन करता है, आठ अंग-सहित अभक्ष्यादि का त्याग करता है, उसे सम्यक्त्वाचरण चारित्र कहा है। उक्त चारित्र को संयमाचरण में ग्रहण नहीं किया, फिर भी चारित्र संज्ञा कुन्दकुन्द स्वामी ने दी है, इसलिए अविरत सम्यग्दृष्टि जीव को अपनी शक्ति अनुसार स्व-गुणस्थान-संबंधी चारित्र का पालन करना चाहिए, परंतु फिर भी ज्ञानी! ध्यान रखना- भूतार्थ मोक्षमार्ग तो तीनों की एकता ही है, -ऐसा नियम समझो एवं सम्यग्दर्शन-बोध-चारित्र-त्रयात्मको नित्यम्। तस्यापि मोक्षमार्गों भवति निषेव्यो यथाशक्तिः।।
-तत्त्वार्थसार इसप्रकार उस गृहस्थ के द्वारा भी अपनी शक्ति के अनुसार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप त्रयात्मक मुक्ति का मार्ग ही सर्वदा सेवन-योग्य है। सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र ही स्वात्मोपलब्धि का साधन है, अन्य कोई उपाय नहीं है,