Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
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श्लो. : 1
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
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ही जीव को मुक्तामुक्त स्वीकारते हैं, भिन्न समयवर्ती भिन्न जीवों की अपेक्षा से नहीं कह रहे कि कुछ जीव मुक्त हैं, कुछ अमुक्त हैं, इसलिए ऐसा नहीं समझना। नाना जीव की अपेक्षा भी नहीं समझना, एक-समय में एक ही जीव मुक्त भी है और अमुक्त भी है। स्पष्ट तो है, मंगल-सूत्र देखिए- "मुक्तामुक्तकरूपो यः" मुक्त और अमुक्त होता हुआ एक-रूप है। .....पर एक-समय में ही मुक्त-अमुक्त कैसे है? ....आचार्य-देव कहते हैं- "कर्मभिः संविदादिना" कर्मों से मुक्त है, पर ज्ञानादि गुणों से मुक्त नहीं है, ज्ञानादि गुणों से अमुक्त है, यह अवस्था एक ही समय की है, जिन-शासन में मोक्ष की व्यवस्था बहुत ही तर्क-सम्मत है। मोक्ष का अर्थ अभाव नहीं है, मोक्ष का अर्थ छूटना है, भिन्न-भिन्न दो संबंधों का पृथक्-होना है। संयोग-पृथकीकरण मोक्ष है, जो छूटता है, वह सद्रूप होता है। यदि मोक्ष का अर्थ अभाव-रूप है, तो किससे कौन छूटा?. ......जो जिसके बन्धन में था, उन दोनों की सत्ता का स्वतंत्र होना अनिवार्य है, स्वतंत्र हुए बिना यह कैसे अवगत कराया जा सकता है कि अमुक द्रव्य से अमुक द्रव्य पृथक्-हुआ है, बन्ध-बन्धन-भाव जिसके साथ हैं, उन दोनों का धर्म भी स्वतंत्र होना चाहिए, –यही कारण है कि आत्मा का धर्म ज्ञान-दर्शन है, कर्म के धर्म स्पर्श, रस, गन्ध आदि वर्ण हैं। एक-दूसरे के धर्म पर-रूप नहीं होते, जीव का पुद्गल के साथ जो बन्ध है, वह असमान-जातीय पर्याय है। यहाँ पर यह विषय अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा कि जब पुद्गल का बन्ध दो ध्रुव भिन्न द्रव्यों के साथ है, जब दोनों का विभक्त-भाव होगा, तब दोनों का अभाव नहीं होगा, वैसी अवस्था में दोनों द्रव्य पर-संबंध से रहित होकर स्वतंत्र-पने को प्राप्त होते हैं, जड़-मतियों ने मोक्ष का अर्थ अभाव समझकर स्व-अज्ञता का परिचय दिया है, द्रव्य का अभाव होता ही नहीं, द्रव्य का लक्षण ही सत् है
दव् सल्लक्खणियं उप्पाद-व्वय-धुवत्त-संजुत्तं। गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू ।।
-पंचास्तिकाय, गा. 10 अर्थात् जो सत् लक्षण वाला है, उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य से संयुक्त है, अथवा जो गुण-पर्यायों का आधार है, उसे सर्वज्ञ-देव द्रव्य कहते हैं। यथार्थ में द्रव्य की सत्ता ही द्रव्य का लक्षण है। जैसे आर्द्र दीवार पर रज-कण लगे होते हैं, दीवार के सूखने पर