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[ ३४ ] वंश में महाकवि समयसुंदर का जन्म हुआ था जिसका उल्लेख उनके शिष्यवादी हर्पनंदन ने इस प्रकार किया है
प्रज्ञाप्रकर्ष प्राग्वाटे इति सत्यं व्यधायि यः ( मध्याह्न व्याख्यान पद्धति) प्राग्वाट-वंश-रत्ना धर्मश्री मजिकासूनुः । (ऋपिमडल वृत्ति) प्राग्वाट शुद्धवशा पड्भापा गीतिकाव्यकर्तारः । ( उत्तराध्ययन वृत्ति) परगड़ वश पोरवाड़ । (श्री समयसुदरोपाध्यायाना गीतम् )
देवीदास ने भी अपने गीत में 'वंश पोरवाड विख्यातो जी' लिखा है।
माता-पिता और दीक्षा-कवि के पिता का नाम रूपसी और माता का लीलादे या धर्मश्री था, जिनका उल्लेख वादी हर्षनंदन ने "रूपसी जी रा नंद" और देवीदास ने “भात लीलादे रूपसी जनमिया" शब्दों द्वारा किया है। कवि के जन्म अथवा दीक्षा का समय अद्यावधि अज्ञात है। परन्तु इनकी प्रथम कृति 'भावशतक' के रचनाकाल के आधार पर श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने उस समय इनकी आयु २०-२१ वर्ष अनुमानित कर जन्म-काल वि० १६२० होने की संभावना की है जो समीचीन जान पड़ती है। वादी हर्पनंदन के "नव यौवन भर संयम संग्रह्यौ जी, सई हथे श्री जिनचंद" इस उल्लेख के अनुसार दीक्षा के समय इनकी अवस्था कम से कम १५ वर्ष होनी चाहिए। इस अनुमान से दीक्षा-काल वि० १६३५ के लगभग वैठता है। इनकी दीक्षा श्रीजिनचंद्रसूरि के करकमलों से होना सिद्ध है। सूरिजी
६-द्रष्ट० हमारा 'युगप्रधान जिनचद्रसूरि' ग्रंथ। इन्होंने सम्राट अकवर को जैन धम का वोध दिया था और सम्राट जहाँगीर तथा अन्य राजायों पर मी इनका बच्छा प्रमाव था।