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मुद्रिका और सन्देशलेकर लंका की ओर ससैन्य आकाशमार्ग से चला। राक्षसोंने ऊँचा गड प्राकार व कूटयन्त्र में असालिया व उपविष दाढा वाला महासर्प रख छोड़ा था। हनुमान ने वज़ कवच पहिन कर कूट यंत्र को चकचूर कर डाला और मुख में प्रविष्ट होकर उदर विदीर्ण कर निकला। उसने असालिया विद्याके आरक्षक वजमुखके भिड़ने पर उसका मस्तक उड़ा दिया। पिता का बदला लेने, लंकासुन्दरी आकर हतुमान से लड़ने लगी। हनुमान उसके हाथ से धनुप छीनने लगा तो वे परस्पर एक दूसरे के प्रति मुग्ध हो गये। युद्ध प्रणय रूप में परिणत हो गया। हनुमान एक रात वहा रह कर प्रातःकाल लंका जाकर विभीपण से मिला और उसे सीता को लौटाने के लिये रावण को समझाने का भार सौंपा। इसके अनन्तर हनुमान सीता के पास गया, वह अत्यन्त दुवेल, चिन्तित और करुण अवस्था मे बैठी हुयी थी। हनुमान ने श्री रास की मुद्रिका उसके अंक में गिरा कर प्रणाम किया और अपना परिचय देते हुये राम-लक्ष्मण के सारे समाचार सुनाये, मन्दोदरी ने कहा-ये हनुमान बड़े वीर है, इन्होंने रावण के सामने वरुण को हराया, जिससे उसने अपनी वहिन चन्द्रनखा की पुत्री अनंगकुसुमा को इन्हें परणाया है, पर इन्होंने भूचर की सेवा स्वीकार की, यह शोभनीय नहीं! हनुमान ने कहा-हमने उपकारी के प्रत्युपकार रूप जो दूतपना किया यह हमारे लिये भूषण है पर तुम सीता के बीच दूतीपना करने आई तो यह महादूषण है। मन्दोदरी रावण की बड़ाई करती हुई राम की बुराई करने लगी। सीता के साथ बोलचाल हो जाने से वह मुष्टि प्रहार करने लगी तो हनुमान ने उसे खूब फटकारा। सीता ने ससैन्य हनुमान को भोजन करवा के स्वयं अभिग्रह पूर्ण होने