________________
[ ४७ ] भरत ने स्वस्थ होकर विशल्या के स्नानजल के लिये आने का कारण झात किया और जल ले जाने में जोखम है अतः विशल्या को ही भिजवाना तय किया। भरत को मुनिराज के ये वचन याद आ गये कि विशल्या लक्ष्मण की स्त्रीरत्न होगी। उसने द्रोणमुख से विशल्या को भेजने का कहलाया। पर जब वह विशल्या को भेजने के लिये राजी नहीं हुआ तो कैकेयी ने जाकर भाई को समझाया और विशल्या को सहेलियों के साथ विमान में बैठा कर लंका की रणभूमि में भेजा। रामचन्द्र ने सहेलियों से परिवृत्त विशल्या का स्वागत किया। उसने लक्ष्मण का अंग-स्पर्श किया तो 'शक्ति' हृदय से निकल कर अग्नि ज्वाला फेंकती हुई वाहर जाने लगी। हनुमान ने जब शक्ति को पकड़ा तो उसने स्त्री रूप में प्रकट होकर कहा-मैं अमोघ विजया शक्ति हूँ ! एक बार अष्टापद पर प्रभु के सन्मुख मन्दोदरी के नृत्य करते हुए वीणा का तात टूट जाने से रावण ने अपनी भुजा की नस निकाल कर सांघ दी जिससे नागराज ने उसे यह अजेय शक्ति दी थी। आज तक इस शक्ति को किसीने नहीं जीता पर विशल्या के तप प्रभाव से मैं पराजित हुई। शक्ति के क्षमा याचना करने पर हनुमान ने उसे मुक्त कर दिया। लक्ष्मण जव सचेत हुआ तो उसने रामसे शक्ति प्रहार और विशल्या द्वारा जीवनदान का सारा वृतान्त ज्ञात किया। मंदिर आदि सुभट लोग उत्सव मनाने लगे तो लक्ष्मण ने कहा- वैरी रावण के जीवित रहते यह उत्सव कैसा ? राम ने कहा-तुम्हारे केसरी सिंह के गूजते रावण मृतक जैसा ही है। विशल्या ने सब सुभटों को भी स्वस्थ कर दिया, मन्दिर आदि सुभटों ने विशल्या का लक्ष्मण के साथ पाणिग्रहण करवा दिया।