Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 412
________________ ( २५६ ) दहा ६ केवली वचन सुणी करी, सहु पांम्या संवेग । लव कुश कुमर कृतांतमुख, ल्यइ दीक्षा अतिवेग ||१|| लखमण राम विभीपणादिक विद्याधर वृन्द । सीता पासि जई करी, प्रणमड पय अरविंद ।।२।। निज अपराध खमाविनइ, वादी आणंद पूर । । आप आपणे घरि सहु गया, भोगवइ राज पडूर ।।३।। हिव ते सीता साधवी, पालई संयम सार। सूत्र सिद्धांत भणइ गुणइ, पालई पंचाचार ॥४॥ करइ वेयावच नइ विनय, किरिया करइ कठोर तपइ वली तप आकरा, ब्रह्मचर्य पणि घोर ॥॥ । सूधउ संयम पालिनई, अणसण कीधो अंति । पाप आलोई पडिकमी, सरणा च्यार करंति ॥६॥ काल करीनइ ऊपनी, सीता धरि सुभध्यान । देवलोकि ते बारमइ, बावीस सागर मान ॥७॥ एहवइ लखमण राम ते, नगर अयोध्या माहि । प्रेमइं लपटाणा रहई, भोगवा राज उछाहि ।।८।। मनह मनोरथ पूरता, प्रजा तणा प्रतिपाल। सुख भोगवता तेहनइ , गयो घणो तिहां काल ll सर्वगाथा ॥ २१८॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445