Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 425
________________ ( २६६ ) वसुदत्तादि पूरव भवई, मुझ हुँतो अति नेहो जी। सत्रुनइ मित्र सरिखा हिवई, तिणमई छोड्यो नेहो जी ।। मइ छोडियो हिव नेह सगलो इम विमासी उपसमइ। आहारपाणी सूझतो ल्यई गोचरी नगरी भमई ।। वलि रहई अटवी मांहि अहिनिसि अपछरा गुण संस्तवई। • • • • • • • • वसुदत्तादि पूरव भवई ।। ४३ ॥ एक दिन विहरतो आवियो, कोडि सिलातल रामो जी। करम छेदन काउगि रह्यो, एक मुगति सुं कामो जी। एक मुगतिसेती काम तेहनइ ध्यान निरंजण ध्यावए। भावना सूधी चित्त भावइ, करम कोडि खपावए ।। पांचमी ढाल ए जाति जकडी, राग गोडी वाधियो। रामनइ प्रणमइ समयसुन्दर एक दिन विहरतो आवियो ।। ४४ ।। सर्वगाथा ॥ २६२ ।। दहा ३७ कोडिसिला काउसगि रह्यो, राम निलंधी योग। सीतेन्द्र दीठो तिहां, अवधिज्ञान उपयोगि ।। १॥ प्रेमरागमनि अपनो, मढ़ विमास्यो एम । योग ध्यानथी चुकवू, रामनईहुँ जिमतेम ॥२॥ भपक श्रेणिथी पाडिनइ, नीचे नाखु राम। जातो राखुं मुगति थी, जिम मुझ सीझर काम ।। ३ ।। मुझ देवलोक उपनइ, माहरो थायइ मित्र । प्रेमई लपटोणा थका, अम्हे रहुं एकत्र ॥४॥

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