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मत कहो माटी का जोडी, बाचन्ता स्वाद लहेस्यो रे । नवनवा रस नवनवी कथा, साभलता सावासि देस्यो रे ।।शासी० गुण लेज्या तुणियण तणो, मुझ मसकति साम्हो जोड्यो रे । अणसहता अवगुणत्रही, मत चालणि सरिखा होज्यो रे ।।६।। सी० आलस अभिमान छोडिनई, सुधी प्रति हाथे लेई रे। ढाल लेज्या तुम्हे गुरु मुखइ, बलि रागनो उपयोग देई रे ।जासी० सखर सभा माहे वाचियो, विजणा मिली मिलतईसादईरे। नरनारी सहु रीभिस्यई, जस लहिम्यो सुगुरु प्रसाद रे।।८।। सी० आदर मान घणो हूम्यई, वलि न्यान दरसणनो लाभो रे। वाचणहारा तणो जम, विस्तरिस्य जिम जल आभो रे ।।।। सी० नवखण्ड पृथिवी ना कह्या, तिण चउपई ना नवखण्डो रे। वाचणहारानो तिहां, पसरो परताप अखण्डो रे ॥ १० ॥ सी० सीतारामनी चउपई, वाचीनइ ए लाभ लेज्यो रे। साभलणहारानइ तुम्हें, कांइ सोलवरत सुंस देज्यो रे ॥ ११ ॥ सी० जिन सासन शिवसासनई, सीताराम चरित सुणीजइ रे। भिन्न २ सासन भणी, का का वात भिन्न कहीजई रे ।।१२।। सी० जिन सासन पणि जू जुया, आचारिजना अभिप्रायो रे । नीता कही रावण सुता, ते पदमचरित कहनायो रे ।। १३।। सी० पणि वीतराग देवइ कह्यो, ते साचो करि सरिदहिज्यो रे। सीताचरित थी मई कह्यो, माहरो छेहडो मत अहिज्यो रे ॥१४॥ हु मतिमूढ किसु जाणुं, मुझ वाणी पणि निसवादो रे। पणि जे जोडमइ रस पड्यो, ते देवगुरुनो परसादो रे ।।१।। सी०