Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
View full book text
________________
( २७४ ) जुगलिया हरिवर्पना, हुस्यई देव वलि तेह । के० तिहाथी वलि चविनइ हुस्यई, तिणनगरी नृप पुत्र एह ।।७। के० जयकंत १ जयप्रभ २ एहवा, विहुँ बांधवनो हुस्यइ नाम | के० चारित्र लेई तपतवी हुस्य, लांतक सुर अभिराम ||८|| के० इण अवसरि सीतेन्द्र तुं, सुख भोगवि सुरलोकि । के० तिहाथी चवि चक्रवति' थई, पामिसि सगला थोक ||६|| के० ते सुर लांतक थी चवी, ताहरा थास्यइ पुन । ते रावण थास्यईतिहां, इन्द्ररथ आचार पवित्र ॥१०॥ के० दृढ समकितधरि सुर हस्यइ, अपछरा करिस्यइ सेव । किणही भवि नरभव लही, थास्यई तीर्थकर देव ॥१शा के० चउसठ इन्द्र मिली करी, पूजिस्यइ पय अरविंद । के० अनुक्रमि तीरथ आपणो, प्रवर्त्तविस्यइ ते जिणिंद ॥१२॥ के० तुं चक्रवति नइ भव तिहां, चारित्र पाली सार । के० वैजयंत विमानना, सुख लहिसि तुं श्रीकार ||१३|| के० तेत्रीस सागर आउखो, भोगवि पूरू तेथि । के० तिहाथी चविनइ तुं वली, आविसि नर भव एथि ॥१४॥ रावण जीव जिणिदंनइ, तुं गणधर थाइसि मुख्य । के० करम चूरि केवल लहि, तुं पामिसि मोक्षना सौख्य ॥१।। के० लखमण नो जीव जे हुस्वइ, चक्रवर्ति सुत सुकुमाल । के० भोगरथ" नामइ भलो. ते पणि आगामी कालि ।।१६। के."
१-भरतक्षम सर्वरत्नमति नीमा २-इन्द्रायुध, मेघरथौ ३-इन्द्रायुध । ४-सीताजीवस्य पुत्र। ५- मेघरथ ।

Page Navigation
1 ... 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445