Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
View full book text
________________
( २७२ ) वहुली नरकनी वेदना, छेदन भेदन दुख । कुंभीपाक पचावणो, ताडन तण तिक्ख ॥ २६ ।। दयादुखु मनि उपना, हा हा करम विचित्र । कुण ठकुराई भोगवी, संकट पड्या परत्र ।। २७ ।। लखमण रावण पणि तिहां, सोचा करई अत्यंत । हा हा धरम कियो नहीं, जे भाष्यो भगवंत ।। २८ ।। अम्हनइ नरकना दुख पड्या, एतो न्यायज हो । ए लक्षण समकित तणो, सरदहिज्यो सहु कोइ ॥ २६ ॥ लखमण रावण साभलो, कहई सीतेन्द्र सुभास। । तुम्ह नइ काढी' नरग थी, सरगमाहि ले जासि ।। ३०॥ चिंतामत करिज्यो तुम्हें, सगली देव सगत्ति । देखी न स दुखिया, भली करूं भगत्ति ॥ ३१ ॥ इम कहिनइ ऊपाडिया, लखमण रावण वेइ । हाथाम जायड गली, माखण वन्हि विलेइ ।। ३२ ।। ते कहइ सुणि सीतेन्द्र तु, मुंकि मुकि अम्ह देह । अम्हे दुख पामु अधिक, तेह तणउ नहि छेह ॥३३॥ देव अनइ दानव तणो, उहा चालइ नही जोर। . नरकथकी छूटइ नही, कीधा करम कठोर ।। ३४ ॥ एह बात इमहिल अछइ, कहइ सीतापणि तोइ । समकित सूधो सरदहो, जिम निस्तारो होइ ।। ३५ ।। सीता वचन सुणी करी, बढ़ समकित थया तेह। वयर विरोध तज्या तुरत, पूरव भवना जेह ॥३६॥ १-नरक थी उद्धरी।

Page Navigation
1 ... 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445