Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 427
________________ ( २७१ ) पणि श्रीराम मुनीसरू, रह्या निश्चल काउसग । रामराय चूका नहीं, जिमि गिरि मेरु अडिग्ग ।। १५ ॥ राम क्षपक श्रेणड चडी, धस्यो निरंजन ध्यान । च्यारि करम चूरी करी, पाम्यो केवल न्यान ॥ १६ ।। केवलि महिमा सुर करई, कंचण कमल ठवेइ । पद वंदइ सीतेन्द्र पणि, त्रिह प्रदक्षिणा देइ ।। १७ ॥ करजोडीनइ गुणस्तवइ, तुं मोटो अणगार । अपराध खामइ आपणो, पगे लागि बहुबार ॥ १८॥ कमल ऊपरि वइसी करी, केवली धर्म कहे। सीतेन्द्रादिक तिहां सहु, सूधइ चित्त सुणेइ ।। १६ ।। ए संसार असार छई, दुखु तणो भण्डार । मधुविन्दू दृष्टान्त जिम, नहि को सुखु लिगार ॥ २० ॥ मोक्ष तणो मारग कह्यो, सुधो साधनो धर्म । बीजो श्रावकनो धरम, त्रीजो सगलो भ्रम ।। २१ ।। साभलिने सीतेन्द्र तु, राग-द्वष ए बेय । पापमूल अति पाडुया, दुखु नरगना देय ॥ २२ ॥ राग-द्वष छोडी करी, करि श्री जिनवर धर्म । सुखु पामइ जिम सासता, बात तणो ए मर्म ।। २३ ।। प्रतिवूधो सीतेन्द्र पणि, पहुतो सरग ममारि। केवलन्यानी पणि करई, वसुधा माहि विहार ॥ २४ ॥ अन्य दिवस सीतेन्द्र वली, दीठा उपयोग देइ । त्रीजी नरक मइ ते पड्या, लखमण रावण बेइ ॥ २५ ॥

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