Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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( २७० ) इम चितविनइ अत्तस्यो, सरग थकी सीतेन्द्र । कामरहित श्रीराम जिहा, तिहा आवियो अतिंद्र ॥५॥ राम ऊपरि फूलातणा, गंधोदकनी वृष्टि । कीधी सीतेन्द्र तिहा, धारी रागनी दृष्टि ।। ६ ।। सीता रूप प्रगट करी, दिव्य विकुर्वी रिद्धि । रामचद आगई कोया, नाटक वत्रीसबद्ध ॥ ७॥ नृत्य करई अपछ। तिहा, गायई गीत रसाल । हाव भाव विभ्रम करई, वारू नयन' विसाल ॥ ८ ॥ सीता कहई थावो तुम्हें, मुझ ऊपरि सुप्रसन्न । साम्हो जोवो हे प्रियू, मुखि बोलो सुवचन्न ।।६।। आलिंगन द्या आविनइ, मुमतइ अपणी जाणि । विरहानल मुझ वारि तुं, हे जीवन हे प्राण || १०॥ ए विद्याधर कन्यका, रूपडं रम्भ समान । तुझ ऊपरि मोही रही, घड तेहनई सनमान ।।११।। प्रीतम करि पाणिग्रहण, भरजोवन ए नारि । भोगवि भोग सभागिया, ल्यइ जोवन फलसार ॥ १२॥ धरम करोजइ सुखभणी, ते सुख भोगवि एह । कर आया सुख का तजी, प्रीतम पडई सन्देह ।। १३ ।। वचन सराग सीता कह्या, इम नाना परकार । वीजा नर चूकइ तुरत, वचन सुणी सविकार ॥ १४ ॥
१-विनय ।

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