Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
View full book text
________________
( २५५ ) तिहां थी चविनइ ते थयो, राणो रावण परिसिद्ध । धनदत्तनोजी पाचमई, सुरलोकि हुँतो समृद्ध वे ॥ ५६ ।। ते तिहा चविनइ थयो, दसरथ नंदन श्रीराम । श्रीभूतिजीव देवी हुँतो, ते बभविमाणा नाम वे ।। ५७ ।। ते चविनइ सीता थई, श्रीरामचन्दनी नारि ।। सीलगुणे सलहीजीयइ, जे सगला ही संसारि वे ।। ५८ ।। गुणवती भवि भाई हुँतो, गुणधर एहवइ अभिधान । सीतानो भाई थयो, भामण्डल विद्यावान वे ॥ ५६ ।। वसुदत्तनइ वांभण हुँतो, जे यज्ञवल्क वलि तत्र । राय विभीषण तुंथयो, ते जाण प्रवीण बिचित्र वे ॥६॥ प्रतिवूधो नउकार थी, तिहा बलद 'तणो' जे जीव । उपगारी सहुनईथयो, ते राजा तु सुग्रीव वे ॥६१।। इम पूरव भव वयर थी, ए सीता नारि निमित्त । मरण थयो रावण तणो, ए करमनी वात विचित्रवे ॥६३|| सीतावेगवती भवई, जे साधनइ दीधो आल। सती थकी सिरि आवियो, ते कलंक सबल चिरकाल वे ||३| वलि तिण कलंक उतारिया, ते साधतणो सुध भावि । सुजस वली सीता लह्यो, ते धीजतणइ प्रस्तावि ॥६॥ सकलभूपण इम केवली, कह्या करमना कठिन विपाक । कलंक न दीजई केहनइ, बरजय मारि नइ हाक वे ॥६॥ नवमा खंड तणी भणी, ए चउथी मोटी ढाल । समयसुदर कहब साभलो, हिव आगलि बात रसाल वे ॥६६॥
सर्वगाथा ॥ २०६||
-
-
HRT

Page Navigation
1 ... 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445