Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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रामचंद जीतो देव आगइ विद्याधर नर किम रहइ । ते हारि मानी गया नासी आप आपणपइ कहई ।। वलि राम प्रतिवोधण भणी उपाय मांड्यो बहुपरी। ते देव वेडं करइ उपक्रम सुर वलि चोट सबल करी ।। २१ ।। सूको सर सींचीजतो, देखाडइ ते देवो जो॥ वलद मुंयो हल जोतर्यो, कमल सिलातलि टेवो जी ।। तटिटेव घाणी माहि वेलू पीलती गिरि ऊपरई। गाडलो चाड ते देखाडइ देवता तिण ऊपरई ।। कहइ राम मूरिख तुम्हे दीसो काम ऊधो कीजतो। किम सिद्धि थास्यइ तुम्हे जोयो सूको सर सींचीजतो ॥२२॥ ते कहई सुणि महापुरुष तु, पगमइ बलती ते कोयोजी। देखई दूरि बलती सहू, हृदय विचारी जोयोजी ।। हृदय विचारी जोइनइ तुं मुयो किम जीवइ वली। का भमई मृतक उपाडि काधइ अकलि दोसइ छइ चली। तुं जाणि लखमण मुंयो निश्चय मृतकनई स्युं करिस हुँ। को लोक माहे लहइ हासी ते कहइ सुणि महापुरुप तुं ॥२३॥ राम कहइ अमंगल तुम्हे, का कहो मूरिख थायो जी। मुझ बांधव जीवइ अछ३, रह्यो मुझथी रीसायोजी ।। मुझथी रीसाय रह्यो वांधव इम कदाग्रह ले रह्यो। वलि सुर जटायुध मनि विमासई राम मानइ नहि कह्यो । वलि करू कोई उपाय बीजो राम समझइ जो किम्हे । एकनर दिखाड्यो मड लीधइ, राम कहइ अमंगल तुम्हे ॥२४॥

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