Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 420
________________ ( २६४ ) मृतकनइ देतो कठलीयो, राम पूछयो तेहोजी। फिट मुंडा तुजाणइ नही, किम जीमइ मडउ एहोजी ॥ किम मडो जीम कहइ ते नर मुज्झ नारी वालही। मुझथी रीसाणी ए न बोल दुसमण लोक मुंई कही। तेहना अणसहतउ वचन हुं तुम्ह पासइ आवियो। जेहवो हु तेहवो तु पणि मृतक नइ देतो कउलीयो ।।२।। सरिसा नर सरिसेण तु, राचइ कुण द्यइ सीखोजी । आपे वे डाहा घj, मइ तुझ कीधी परीखो जी ।। कीधी परीक्षा ताहरी मई हुं तुझ पासि रहिसि कहइ। रामचंद आदर घणो दीधो एकठा वेउं रहा ।। एक दिवस ते वेळ मडानइ मुंकिनइ हरिसेण सु । गया केथि केणि ठामइ अनेरइ सरिसा नर सरिसेण तुं ॥२६।। पाछे वलते साभल्यउ, देवनी माया मेल्योजी । लखमण नारि सुं बोलतो, करतो कामिनी केल्योजी॥ कामिनी करतो केलि दीठो रामनइ सुरवर कहई। तुझ बंधु महापापिष्ट माहरी नारिखं हसतो रहई। मुझ नारि पणि अतिचपल चंचल मई हिवई इम अटकल्यो। कुण काम इणसं आपण हिव पाछे वलते सांभल्यउ ||२७|| राज छोड्यों का तईआपणो, ए वांधव नइ काजो जी। वोलाया बोलइ नहीं, न गिणइ कायदो लाजोजी ।। न गिणइ ए कायदो लाल आपणो इक पखो नेहो किसो। संभारि श्री वीतराग देवनो वचन अमृत रस जिसो॥

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