Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 422
________________ प्रस्तावि सीताहरण करई र पणि सेवक तुम्ह तणो । कृतातमुख जे हुनो तिण चारिन पाल्यो अति वणो ।। ऊपनो ए पणि तेण ठाम अवधिज्ञान प्रयुंजीयो। दीठी अवस्था एहवी तुझ तेह जटायुध पंखोयो ॥३२॥ तुलखमणनई मुयो थको, काध लीधर भमड तेहो जी। तिण तुझनइ प्रतिबोधिवा, माया केलवी एहो जी ।। केलवी माया अम्हे सगली, तुज्झनइ प्रति बूझयो। बलि कहइ तु ते करूं अम्हे, एह अवसर साचन्यो । कहइ राम मुझनइ सहू कीधो दीयो प्रतिबोध ठावको । आपणी ठामइ तुम्हे पहुचो तु लखमण नई मुयो थको ॥३३॥ लखमणनइ संसकारिनई, राम चड्यो वयरागो जी। कामनइ भोगथी उभग्यो, राजतणड करत त्यागो जी।। करइ राजरिद्धिनो त्याग चारित्र लेणनइ उछक हुयो। कहइ सत्रुधननई राजल्यइ तुं मइ दियो तुमनइ दुयो ।। हु ग्रहिसि चारित्र तप तपीनइ पाप करम निवारनई। सासता पामिसि सुखु मुगतिना लखमण नइ संसकारि नइ ॥३४॥ सधन बलतो भण, राज रूडो नहि एहोजी । तिण कारणि छोडयो तुम्हे, धइ दुख नरकनो तेहो जी ॥ घर दुख नरक नो वलिय लखमण तणो दुखु थयो घणो । तिण राजरिद्ध थकी सहोदर ऊभगो मन अम्हतणो॥ (हुँ) पणि तुम्हां सुं लेइसि चारित्र सुद्ध संवेगइ घण। श्रीराम जाण्यो जुगत कहइ छह सत्रुधन वलतो भणइ ॥३५॥

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