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दहा ६ केवली वचन सुणी करी, सहु पांम्या संवेग । लव कुश कुमर कृतांतमुख, ल्यइ दीक्षा अतिवेग ||१|| लखमण राम विभीपणादिक विद्याधर वृन्द । सीता पासि जई करी, प्रणमड पय अरविंद ।।२।। निज अपराध खमाविनइ, वादी आणंद पूर । । आप आपणे घरि सहु गया, भोगवइ राज पडूर ।।३।। हिव ते सीता साधवी, पालई संयम सार। सूत्र सिद्धांत भणइ गुणइ, पालई पंचाचार ॥४॥ करइ वेयावच नइ विनय, किरिया करइ कठोर तपइ वली तप आकरा, ब्रह्मचर्य पणि घोर ॥॥ । सूधउ संयम पालिनई, अणसण कीधो अंति । पाप आलोई पडिकमी, सरणा च्यार करंति ॥६॥ काल करीनइ ऊपनी, सीता धरि सुभध्यान । देवलोकि ते बारमइ, बावीस सागर मान ॥७॥ एहवइ लखमण राम ते, नगर अयोध्या माहि । प्रेमइं लपटाणा रहई, भोगवा राज उछाहि ।।८।। मनह मनोरथ पूरता, प्रजा तणा प्रतिपाल। सुख भोगवता तेहनइ , गयो घणो तिहां काल ll
सर्वगाथा ॥ २१८॥