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[ ५२ ] ने अवसर देखकर फिर रावण को समझाया, पर उसने अहंकार के । वशीभूत होकर कहा-चक्ररत्न का भय दिखाते हो ? लक्ष्मण ने उसकी धृष्टता चरम सीमा पर पहुंची देखकर उस पर चक्ररत्न छोड़ा जिसके प्रहार से रावण मरकर धराशायी हो गया। रावण के मरते ही उसकी सारी सेना राम की सेना मे मिल गई। राम विजयी हुए।
विभीपण-शोक तथा रावण की अन्त्येष्टि रावण को मरा देखकर विभीषण भ्रातृ-शोक से अभिभूत होकर 'विलाप करता हुआ आत्म-घात करने लगा जिसे राम ने समझा-बुझाकर शान्त किया । मन्दोदरी आदि रानियों को भी करुण-क्रन्दन करते देख रामचन्द्र ने आकर समझाया और रावण के दाह संस्कार की तैयारी की। इन्द्रजित् व कुम्भकरण आदि को मुक्त कर दिया गया। राम, लक्ष्मण ने रावण की अन्त्येष्टि मे शामिल होकर उसे पद्मसरोवर पर जलांजलि दी।
रावण परिवार का चारित्र-ग्रहण दूसरे दिन लंकापुरी के उद्यान मे अप्रमेयवल नामक मुनि छप्पन हजार मुनियों के साथ पधारे, जिन्हें वहाँ अर्द्धरात्रि के समय केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। राम, लक्ष्मण, इन्द्रजित् , कुम्भकरण, मेघनाद आदि सभी लोग केवली भगवान को वन्दनार्थ आए। केवली भगवान की वैराग्यवासित देशना श्रवण कर कुम्भकरण, मेघनाद, इन्द्रजित् ने उनके पास चारित्र-ग्रहण कर लिया। मन्दोदरी पति पुत्रादि के वियोग से दुःख विह्वल थी, उसे संयमश्री प्रवर्तिनी ने प्रतिवोध देकर अठावन हजार चन्द्रनखादि स्त्रियों के साथ दीक्षित किया।