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( १६३ ) तरुणा केइ हलुकमा, व्रत आदरइ हे आपण उछरंग। ते भणी मुझ आदेस धौ, मन मान्यो हे अम्ह संयम रंग ॥३६॥ अ० आदेस लीधो राम नो, तिण वेला हे तसु भाग संयोग। श्रीकुलभूपण केवली, पधास्या हे गयो वांदिवा लोग ॥३७|| अ० भरत नरेसर भावसुं, व्रत लीधो हे नृप सहस सघाति । सामग्री सबली सजी, राम कीधो हे महुछव वहु भांति ।।३८।। अ० तप संयम करइ आकरा, सुध साधइ हे राजरिषि सिवपंथ । आप तरई अउरा तारवई, नित वांदु हे ते हुँ भरत निग्रंथ ॥३६॥ अ० छठ्ठी ढाल पूरी थई, राम लाधा हे अयोध्या सुख लील। भरतई दीक्षा आदरी, समयसुंदर हे कहइ धन पालइ जे सील ||४००
सर्वगाथा ||२६६|| दहा १२ इण प्रस्तावई वीनव्यो, राम नई राज्य निमित्त । सुग्रीव प्रमुख विद्याधरे, ते कहइ राम तुरन्त ॥ १ ॥ राज्य द्यउ लखमण नई तुम्हें, वासुदेव छइ एह । तिण पाम्यई मईपामियो, मुझ पद प्रणमई तेह ।।२।। सहु राजा सहु मत्रवी, सहु अधिकारी लोक। मिली महोछव मांडियो, मेल्या सगला थोक ॥३॥ गीत गान गाईजते, वाजंते वाजिन । वलि चामर वीजीजते, सिरि ऊपरि धरि छन ।।४।। कनक पदम' वइसारि नइ, वे वांधव सुसनेह । कनक कलस जलसु भरी, मिल्या विद्याधर तेह ॥५॥ १-पट्ट
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