Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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( २१३ ) साहमी सबद सुणी करी रे, हरपी हीयडइ मुज्म । कर जोडी सीता कहइ रे, साहमी वंदना तुझ ॥४१॥पि०॥ सीता वात सहु कही रे, अपनी आमूल चूल । जिम रावण गयो अपहरी रे, राम हुवो प्रतिकूल ॥४२॥पि०॥ सउकि लोक अपजस सुणी रे, राम मुंकी वनवास। बात कहइ रोती थकी रे, नाखंती नीसास ॥४३॥पिणा बात सुणी सोता तणी रे, बज्रजघ कहइ एह । हे रमणी तुं रोइ मा रे, कारिमो कुटंब सनेह ॥४४॥पि०॥ कहि संसारमइ कुण सुखी रे, नारिकि ना दुख होइ। कुंभीपाक पचावणो रे, ताडना तर्जना जोइ ॥४५॥पि०|| तिरजंच दुख सहइ बापडा रे, भूख त्रिपा सी ताप। भार वहइ परिवस पड्या रे, करता कोडि विलाप ॥४६॥पि०॥ देवता पणि दुखिया कह्या रे, विरह वियोग विकार। एक एकनी अस्त्री हरइ रे, मुहकम मारामारि ॥४ापि०ll मनुष्यतणी गति मई कह्या रे, विरह वियोग ना दुक्ख । जनम मरण वेदन जरा रे, ताडन तर्जन तिक्ख ॥४८॥पि०|| आप थकी तु जोइनई रे, सुख दुख हुयइ जग माहि । भव वन महि भमतां थकां रे, कदि तावड कदि छांह ।।४ापि०॥ ए संसार सरूप छड रे, जांणिनई तुंजीव वालि। धरम बहिनि तु माहरइ रे, सील सुधइ मनि पालि ॥५०॥ पिना

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