Book Title: Sitaram Chaupai
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 402
________________ । २४६ ) नवमा खंडतणी भणी । सी० बीजी ढाल विसाल रे । ध० समयसुदर करई वंदना । सी० सीतासतीनइ त्रिकाल रे ।।५०|| १० सर्वगाथा ||१०|| दहा १३ कहई सीता प्रीतम सुणो, तुम्हे कह्यो ते तेम । पणि हुँ भोगथी उभगी, चित्त अम्हारो एम ।। १ ।। ऐमई लपटाणी हुती, पहिली तुम्ह सुं कंत ।। णितई मुझनइ परिहरी, ते साभरई वृतांत ।। २ ।। तुछ सुखु संसारना, दुखु घणो दीसंत । सरव मेरु पटतर, कहो मन किम हीसंत ।। ३ ।। तिणनापुरिसे परिहस्यो, कुटम्बतणो प्रतिबंध' । अंतकलि दुख ऊपजई, प्रीतम प्रेम सम्बन्ध ॥४॥ हा हा तावो करई', जउ पहिलो प्रति प्रेम । छाड्यो हुन तो मुज्झनउ, ए दुख पड़ता केम ॥५॥ भोग घणेहीभोगवे, जीवनइ त्रिपति न होइ ।। सुपन सारीपासुख ए, दुरगति दुख द्यइ सोड ॥६॥ ते सुखनहि चक्रे तिनइ, जे सुख साधनइ जाणि । मई मनि वाल्योमाहरो, म कहिसि मुझनइ ताणि ।। ७ ॥ इम कहती सीता रती, कीधो मस्तक लोच' । केस क्लेस दूर क्यिा, सहु टली मननी सोच ॥ ८ ॥ १-परिबन्ध । २~ रहो। ३- इत्युक्तवा मैथिली केशानुन्चरवान स्वमुष्टिना ।। रामयंचार्पयामास शक्रस्येव जिनेश्वर. (पदमचरित्रे नवम् सर्गे)

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